Friday, June 16, 2017

जब मैं छोटा बच्चा था...............................................................स्मृतियाँ -भाग-1

इस कहानी को पढ़ने से पहले आप कुछ ऐसी कल्पना करो कि मैं मदारी बना आपकी गली में खड़ा तमाशा दिखा रहा हूँ, और आप बाकि बच्चों के साथ घेरा बनाये मेरी बकलोली की पिटारी को निहार रहे हो कि अब इसमें से क्या निकलेगा, और अब क्या?



मेरे पास बहुत सारी कहानियां हैं। जो वक़्त बे वक़्त ज़हन में कुलबुलाती रहतीं हैं। दरअसल बहुत सी घटनाएँ ऐसी भी होती हैं, जो वक़्त के साथ साथ कहानियां बन जाती हैं, लेकिन कभी न कभी कहीं न कहीं आपके साथ ही रहती हैं। अगर आप उनको पहचान लेते हैं तो वह कहानियां बनकर बाहर आ जाती हैं, वरना वक़्त की धूल के नीचे दबकर भुला दी जाती हैं।
यह उन दिनों की बात है जब हमारे देश में सीडी प्लेयर का नया नया आगमन हुआ था। इससे पहले हमारी एक पीढ़ी,  घर में रातों को वीसीआर पर फिल्मों को देखकर बड़ी हुई है.

वह दिन आप सबको याद ही होगा कि जब घर में शादी बियाह छिल्ला छट्टी मुंडन, या फिर कोई और उत्सव होता था, और घर में इकट्ठा हुए नौजवान लौंडे वीसीआर बुक करके लाते थे। एक रात में तीन फ़िल्में चलतीं थीं, उंघते रहते थे, लेकिन फ़िल्म नहीं छोड़ते थे। भला छोड़ते भी कैसे शहंनशाह, सूर्या, मर्द, कुली, हातिमताई, पुरानी हवेली फ़िल्में ही कुछ ऐसी थीं, कि जिनके ऊपर पूरी रात की नींद कुर्बान की जा सकती थी। 

ख़ैर वह दौर बीत गया. हम बच्चे से बड़े होने लगे और ऐसे हुए कि पता ही नहीं चला कि कब स्कूल से निकल कर कॉलेज में जा पहुचे. जिस दिन से हमको बजाज का विज्ञापन 



‘जब मैं छोटा लड़का था बड़ी शररत करता था.’ बकवास, और करेन लूनल(Karen Lunel) का ‘ला ला रा ला रा ला’, वाला, लिरिल का विज्ञापन ख़ास लगने लगा, उस दिन हमको अपने बड़े होने का एहसास हुआ. अब हम बड़े हो गए हैं, बात पर पुख्ता मुहर तब लग गई, जब हमको कॉलेज में नॉट वाली टाई भी पहनने को मिली.

हाँ याद आया बात चल रही थी कि उस दौर की जब हमारे मुलुक में सीडी प्लेयर का आगमन हुआ था। जैसा कि होता आया है, कि इस तरह की चीज़ों की शुरुआत कुलीन परिवारों से होती है. फिर धीरे-धीरे गू मोल हो जातीं हैं।

सीडी प्लेयर के साथ भी कुछ ऐसा ही था। इसके साथ ही साथ एक और ख़ास बात है भारतीय बाजार में, कि हर नयी तकनीक का विरोध करना ताकि पुराना धंधा चलता रहे.
अब वह चाहें ब्लैक एंड वाइट टेलीविज़न के सामने रंगीन टेलीविज़न का आना हो, या फिर केबल टीवी का आना हो.
हर जगह की एक सी ही कहानी थी. मोहल्ले की चच्ची, स्कूल के मास्टर साहब, वकील साहब, सब एक ही बात चिल्लाते थे, कि रंगीन टेलीविज़न से बच्चों की आँखे खराब हो जाती हैं।


“अरे! गुड्डी. आओ ज़रा बैठ लो. क्या कर रही?” ललैन ने दरवाज़े पर से झाकते हुए गुड्डी को आवाज़ दी.
“बथुआ बनाने जा रहे हैं, भाभी. सगीर का लड़का दे गया था सुबह.”
“आयं हमने सुना मास्टर साहब के घर रंगीन टीवी आई है?”
“हाँ और क्या! उनके पास कोई कमी पैसों की, वह तो बड़े मोटे आसामी हैं.”
“हाँ और क्या, सब होत की जोत है. हमारा तो भैया गुड्डी, सादा वाला ही सही, कौन बच्चों की आँखे ख़राब करायेगा, यह कंपनी वाले हरामी,  तो कुछ भी बेचने के लिए निकाल देते हैं, अपनी पुरानी वाली अच्छी. शटर खीचकर ताला लगा दो.”


“हाँ और क्या? लेओ अब रंगीन टीवीयाँ चली हैं। हमारे बच्चे नासपीटे, स्टेशन खुलने से पहले ही गोल घेरा आता है, टूऊँऊँ..बोलता हुआ उसको ही देखते रहते हैं. बहुत ज़िद करी रंगीन टीवी की हमने एक नहीं चलने दी. इनके पापा ने एक प्लास्टिक का शीशा लाकर लगा दिया, सामने चारों कोनों से रंगीन.” गुड्डी ने हाथ चलाते हुए कहा.
सही करा. हमारे बच्चे तो कमीने इतने उताने हैं कि पूछो मत, कल अंटीना (एंटीना) घुमा रहा था, बच गया छत से नीचे आकर गिरता. बड़ी खैर हो गई. हमने भी ख़ूब कूटा सुमनियाँ को, घोड़ी होकर छोटे भाई को भेज दिया भरी दोपहरी में छत पर.” उस दौर में गली मुहल्लों में ऐसी बातें होना आम बात थीं.
हलाकि पूरे भारत से एक भी ख़बर नहीं आई कि कोई बच्चा रात को रंगीन टीवी देखकर सोया, और सुबह को उसकी आँखों के रंग उड़ गए। मने अंधा हो गया।


“अरे! वह अपने मास्टर साहब हैं, गुर्रैया वाले, अलीम साब.  वह बता रहे थे. यह जो केबल टीवी चला है, यह तो भैय्या बहुत गन्दी चीज़ है. उनके कॉलेज के प्रिन्सिपल साब हैं, उनका लड़का रात को फैशन टीवी देखता हुआ पकड़ा गया.”
“छी! वह जो लड़कियां चलती हुई आती हैं.., मार चड्डीयां पहने हुए?”
“हाँ वही तो.”
“लगवाया क्यों डिश, क्या आफत मारी जा रही थी.”
“लड़के ने लगवाया था क्रिकेट मैच का बोलकर, और देखो रात को यह कारनामा करता था.”
“गर्दन मरोड़ता होगा तोते की...”
“और क्या! वह ख़ुद भी तो मियां बीवी जैसे के तैसे हैं, साड़ी और सलवार कुरते के अलावा, कोई कुछ पहनता है यहाँ,  दूर दूर तलक...,  और एक वह हैं, मैक्सी पहने पूरी दुनियां मझां आतीं हैं.”
“सब बड़े लोगों  के चोचलें हैं, उनको कौन बोलेगा. मरन तो हम गरीबों की है भैय्या. ”
“ हाँ और क्या. हमारा छोटा लड़का उनके पास पढ़ने जाता है. उसको बोले ‘बेटा अन्दर बेड के पास तकिये के नीचे से सिगरेट ले आओ, अब वह तो मासूम बच्चा है, उसने तकिये के बजाय गद्दा उठा दिया, और हूँआं से  ‘उसका पैकेट’  उठाये चला आया.”
“हे भगवान्! तुम्हें किसने बताया?” ललैन ने आँखे मिचमिचाते हुए हँसकर कहा.
“कौन बताएगा, खुद हस हस के बता रहीं थीं, उनकी बीवी. कहती मेहमान बैठे थे, सब हस हस के लोटपोट हो गए, लड़कियां तो मारे शरम से अन्दर कमरे में भाग गईं.”
उफ़! लेओ देखो बात फिर भटक गई, तुम्हारे चक्कर में। 
तो भैया उन दिनों वीसीआर धीरे धीरे खत्म हो रहे थे और उनकी जगह मुई सीडी प्लेयर ले रही थी। मेरे एक दोस्त गुड्डन, के भाई जो कि दुबई में रहते थे, जब वह आये तो साथ में एक सैमसंग का सीडी प्लेयर भी लेकर आये। शुरूआती प्लेयर में एक साथ तीन डिस्क लगाईं जा सकतीं थीं। 
गुड्डन मैं और मेरा एक और दोस्त बबलू, हम तीनों दोस्तों ने मिलकर घर में,  तो कभी छत पर कई सारी फ़िल्में देखी।
सीडी प्लेयर आया तो, कॉम्पैक्ट डिस्क भी साथ लाया। और जैसा कि होता आया ही कि हर तकनीक का शुरूआती दिनों में नकलची जम कर फायदा उठाते हैं, और मोटा माल भी कमाते हैं। कंप्यूटर अभी ऑफिस स्कूल और साइबर कैफ़े तक ही सीमित थे, लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उनकी घुसपैठ नहीं हुई थी। लेकिन उसी दौरान जब सीडी प्लेयर आया तो उसके साथ साथ कंपैक्ट डिस्क भी आई। लेकिन बिन बुलाई पिछलग्गू की तरह पायरेसी की तकनीक भी उसके साथ-साथ आ गई।
बिलकुल वैसे ही जैसे अमेरिका ने अपने लाल गेहूं में पार्थेनियम नाम की खरपतवार भेजी थी. जो आज भी किसानों की छाती पर गाजर घास के नाम से मूंग दल रही है।
फिलहाल दोस्त की सीडी प्लेयर पर हमने बैड बॉयज, टाइटैनिक , वैन हेलसिंग एक के बाद एक कई सारी फ़िल्में देखी।




लेकिन एक फ़िल्म जिसकी दबी ज़ुबान में कॉलेज के सीनियर लौंडो में बहुत चर्चा थी वह थी ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’. अब
कॉलेज से आते जाते हम तीनों दोस्त यहाँ वहां सड़क चौराहे, घंटाघर पर लगे चटपटी फिल्मों के पोस्टर के बीच उस फिल्म ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’ के भी पोस्टर लगे देखते थे. सुना मनीषा कोइराला उसमे अईसईं बैठी रही थी. हमने सोचा कि कैसऊ न कैसऊ इस फिल्म को देखा जाए. (जारी रहेगी...)

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