कृष्णा
जिसने भी सुना उसने जैसे दाँतों तले ऊँगली दबा ली. ख़बर अविश्वसनीय थी लेकिन
पुख्ता थी. आजकल के ज़माने में ऐसा फैसला किसी अजूबे से कम थोड़ी होता है. सच कहूँ
तो यकीन करना मुश्किल हो रहा था. लेकिन सच से मुह भी तो नहीं चुराया जा सकता. हर
तरफ़ तरह तरह की चर्चा थी.
“कोई धरम करम वालीं होती तो कुछ सोचती भीं. वह अपने आगे किसी की सुनती हैं..?”
“और क्या.., अपने आगे किसकी चलने देती हैं. जो इंसान पूजा पाठ न जाने, उसे
क्या जात बिरादरी की चिंता.”
ऐसी बातें ख़ूब बनाई जा रहीं थीं. शुरू शुरू में तो ख़ानदान भर में ख़ूब अटकलें
लगाईं गईं, किसी ने कहा चक्कर रहा होगा, तो किसी ने कहा लड़की ने सीधी सादी सरला
देवी को अपनी लच्छेदार बातों में फसा लिया होगा. आख़िरकार वह उनकी पड़ोसी ही तो है,
आना जाना तो लगा ही रहता होगा. कुल मिलाकर जितने मुह उतनी बातें. तरह तरह की बातें
बनाई गईं, लेकिन जब सरला देवी ने अपना फैसला नहीं बदला तो खिल्ली भी ख़ूब उड़ाई गई.
सरला देवी ने अपने इकलौते लड़के सिद्धार्थ की शादी एक ग़रीब घर की लड़की से तय कर
दी थी. हलाकि कौतुहल की वजह दोनों परिवारों में सामाजिक प्रतिष्ठा में असमानता नहीं
थी. असल वजह यह थी कि वह लड़की झक्की और सनकी सी है, यह बात गली मोहल्ले दूर-दूर तक
मशहूर थी. माना कि यह उनके लड़के की दूसरी शादी थी, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि मलमल के दुशाले में टाट का पैबंद लगा दिया
जाये. मलमल घिस भी जाए तो भी मलमल ही रहती है. और टाट नया हो या पुराना टाट ही
रहेगा. ख़ानदान भर में बहुत सी लड़कियां थीं, एक बार इशारा तो करतीं एक से एक अच्छी
लड़की मिल जाती. अभी उम्र ही क्या थी सिद्धार्थ की.
और सबसे बड़ी बात यह थी कि वह लड़की सनकी और झक्की ही नहीं एक नंबर की झगड़ालू भी
थी. खानदान वाले ही क्या खुद सिद्धार्थ की
बड़ी बहन तनूजा भी इस रिश्तें को लेकर राज़ी नहीं थी. और तो और सिद्धार्थ खुद भी इस
रिश्ते के लिए राज़ी नहीं था. जैसे ही सिद्धार्थ ने फ़ोन पर तनूजा को ख़बर दी, तनूजा
ने अपनी ससुराल से आकर एक हफ्ता पहले ही घर में धरना डाल दिया था. उसकी पूरी कोशिश
थी कि जैसे भी हो, मम्मी को मनाया जाए और इस मुसीबत को टाला जाए.
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फिलहाल मुसीबत की शुरुआत एक हफ्ता पहले ही हुई थी. जिस रोज़ देविका की ननंद ने
एक लड़की का फोटो भेजा था. हर दिन के जैसे वह एक सामान्य सी सुबह थी.
“यह फ़ोटो देविका की ननंद ने भेजा है. उसकी सहेली है. यूनिवर्सिटी में साथ में
पढ़ती है. अच्छा घर ख़ानदान, समाज में इज्ज़त है इनकी. ज़ात बिरादरी सब मिलती है.” माँ
सरला देवी ने डाइनिंग टेबल पर, सिद्धार्थ की तरफ एक फोटो बढ़ाते हुए कहा. सिद्धार्थ
ने फोटो पर एक उचकती सी नज़र डाली. सरला देवी उसके चेहरे को प्रश्नवाचक द्रष्टि से
देख रहीं थीं. उसने गर्दन झुकाई और अपने ब्रेकफास्ट में लगा रहा. लेकिन उसको एहसास
था कि माँ को उसके जवाब का इंतेज़ार है.
“मम्मी मैं आपको पहले ही बोल चुका हूँ कि मुझे शादी नहीं करनी है. सच बोलूं तो
चारू के बाद अब मुझे किसी से प्यार नहीं रहा. और न ही मुझे शादी करके पति
परमेश्वेर बनकर जीने में कोई दिलचस्पी है. आप क्यों पीछे पड़े हो मेरे.” सिद्धार्थ
ने फोटो मम्मी की तरफ वापस सरकाते हुए अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी.
“अरे नंबर भी दिया है भई, तुम खुद लड़की से डायरेक्ट बात कर लो. मिल लो उससे
जाकर.” सरला देवी ने फोटो उल्टा करके एक बार फिर उसकी तरफ़ बढ़ाया. वहां पर एक दस
अंक का नंबर लिखा हुआ था.
“अरे मम्मी मेरी शादी एक बार हो चुकी है. अब मुझे दुबारा शादी करने की ज़रुरत
नहीं है.”
“जब से चारु हम सबको छोड़कर गई है, तबसे तुमको दुनियां की कोई चीज़ पसंद ही नहीं
आती है. जिंदगी ऐसे ही तो नहीं कट जाती है. और फिर गुनगुन अभी बहुत छोटी है. तुमको
नहीं लगता कि उसको एक माँ के प्यार की ज़रुरत है.”
“आप प्लीज़ सुबह-सुबह यह सब बातें लेकर मत बैठो, मुझे ऑफिस के लिए भी निकलना है.
और मैं कैसे मान लूं कि जो उसकी माँ बनकर आएगी, वह उसको माँ का प्यार देगी भी या
नहीं. सौतेली माँ कैसी होती है नहीं देखा क्या..?” सिद्धार्थ ने डाइनिंग टेबल से
उठते हुए कहा.
“ठीक है भई.., जो दिल चाहे करो. हमें क्या पड़ी. रोज़ की बीमार. घुटनों की मरीज़.”
सरला देवी ने अपना आख़िरी भावपूर्ण तीर चलाया, लेकिन
कामयाब नहीं हुईं. सिद्धार्थ तब तक उठकर अपना कोट सम्हाल चुका था.
“हाँ गुनगुन के लिए उसकी दादी ही काफी हैं. फिलहाल मैं निकल रहा हूँ, गुनगुन
की भी बस आने वाली है.” सिद्धार्थ ने अपना बैग उठाया और गुनगुन को दूर से ही बाय
बोलकर निकल गया. गुनगुन भी डाइनिंग टेबल से उठकर अपना बैग टांगने लगी. दादी ने
उसकी मदद करते हुए, गले में थरमस की बोतल डाल दी. गुनगुन स्कूल के लिए चली गई.
दिन ऐसे ही बीत रहे थे. चारु की मौत के बाद से सिद्धार्थ ने खुद को ऑफिस के
कामों में इतना व्यस्त कर लिया कि दुनियां
की तरफ़ उसको देखने की फुर्सत ही नहीं रहती. माँ ने भी अब धीरे-धीरे हार मान ली थी.
उनको भी अब लगने लगा था कि सिद्धार्थ का अब शादी करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन
गुनगुन अभी मात्र सात साल की थी. ऐसे में सरला देवी का उसका ख़याल रखना आसान नहीं
था.
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उस दिन मौसम साफ़ था. दोपहर के वक़्त ज्यादह गर्मी नहीं थी. लेकिन कालोनी की उस
गली में चहल-पहल नहीं रहती थी. वह बच्ची
उस व्यक्ति के साथ घर के दरवाज़े पर बैठी थी. वह पूरी दिलचस्पी से अपनी चोकलेट को
खा रही थी. वह व्यक्ति उसको प्यार दिखाते हुए कभी उसका गाल खीचता, तो कभी उसके
कंधों को धीरे से दबाते हुए सहलाता. वह उससे हस हस कर बातें कर रहा था. लेकिन
बच्ची की दिलचस्पी चोकलेट में ही थी. वह मुस्कुराती और फिर वापस अपने चोकलेट में
लग जाती. बच्ची के गुदगुदी करते हुए उसका हाथ कभी गर्दन पर तो कभी फ्रॉक के अन्दर पैरों
पर ऊपर की तरफ़ जाता. बच्ची गुदगुदी से शरमाती अपने पैरों को समेटती और चोकलेट खाने
में वापस मशगुल हो जाती.
तभी किसी आंधी तूफ़ान के जैसे वह वहां पर आई, और उसने बच्ची का हाथ पकड़ कर अपनी
तरफ खींचा.
“इधर आओ बेटा, क्या कर रहे हो यह..? कौन हैं यह?” वह व्यक्ति एक पल के लिए झिझक सा
गया. उसके चेहरे की रंगत बदल गई.
“मैं इसका अंकल हूँ.” बच्ची से पहले उस व्यक्ति ने फसी हुई आवाज़ में घबराते
हुए जवाब दिया.
“तुमसे किसने पूछा? आप बताओ बेटा कौन हैं यह?”
“मोहित अंकल.”
“यह तुम क्या हरकत कर रहे थे इस बच्ची के साथ..हयं..?” उस लड़की का पारा जैसे
सातवें आसमान पर था. गुस्से से वह जैसे काँप रही थी. वह बिना कुछ बोले बच्ची को लेकर घर में दाख़िल
हो गई.
“यह आपकी बच्ची है. ऐसे किसी के भी साथ आप उसको छोड़ देंगे? ख़याल नहीं रख सकते
आप इसका? कौन है वह दरवाज़े पर, जिसके साथ यह बैठी थी? यहाँ-वहां कहीं भी उसको छू
रहा है. मम्मी कहाँ हैं इसकी..?” उसने एक ही सांसे में बिना रुके बहुत कुछ कह डाला.
“मम्मी नहीं हैं.” सिद्धार्थ समझ नहीं प् रहा थ कि और क्या जवाब दूं.
“हाँ तो मम्मी नहीं हैं तो ज़रा देर आप ही उसका ख़याल रख लो.” जैसे वह आंधी तूफान के साथ अन्दर दाख़िल हुई थी
वैसे ही वह गुन्गुन का हाथ सिद्धार्थ के हाथ में देकर बिना कुछ सुने,अपना चश्मा
सम्हालती हुई वापस मुड़ गई थी. सिद्धार्थ
उसको देखता ही रह गया.वह आगे कुछ न कह पाया न कुछ पूछ पाया.
सिद्धार्थ गुनगुन को मोहित के पास छोड़कर, कार की चाबी लेने ही अन्दर बढ़ गया था.
यह मुश्किल से एक मिनट का काम था लेकिन वह मम्मी के कमरे में उनका हाल चाल लेने
लगा था. ताकि उनको बता सकूँ कि मैं गुनगुन को लेकर मोहित के साथ माल को जा रहा
हूँ.
मोहित सिद्धार्थ का ऑफिस का दोस्त था. वह हर मामले में बेहद हेल्पफुल इंसान
था. उससे सिद्धार्थ की काफी दोस्ती थी. दिल में सैकड़ों सवाल होने के बाद भी वह इस बारे में उससे कुछ नहीं पूछ सका. वह भी
मोबाइल पर कॉल का बहाना बनाते हुए पिछली सीट पर बैठ गया. ‘हो सकता है कि उस लड़की को
धोखा हुआ हो.’ सोचते हुए सिद्धार्थ ने गुनगुन के चेहरे को देखा. वह आगे सीट पर बैठी थी. वह बिलकुल सामान्य सी
दिख रही थी. सिद्धार्थ रुमाल से उसके चेहरे को साफ़ करने लगा. मोहित पीछे बैठा अभी
भी अपने मोबाइल में बिज़ी था. खैर उन दोनों के बीच इस बारे में कोई बात नहीं हुई.
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“क्या हुआ क्यों बैग पटक रही हो? और यह लेटने की जगह है, थक गई हो, तो अन्दर जाकर लेट जाओ.”
“कुछ नहीं बस ऐसे ही..” कृष्णा ने सोफे पर पसरते हुए कहा.
“कुछ नहीं क्या.., आज फिर किसी से लड़कर आई.. तुम्हारी यह आदत कब जायेगी? अब बोलती
क्यों नही. बोलो क्या हुआ किस से लड़कर आई हो कृष्णा?” मम्मी ने उसका बैग उठाते हुए
पूछा.
“यहाँ गली में ही मोड़ से पहले.., वह जो बड़ा सा घर है.., मुझे समझ नहीं आता कि
लोग कब बच्चों को सम्हालना सीखेंगे?”
“हे भगवान् तुमने यहाँ आते ही लोगो से
लड़ना शुरू कर दिया. तुम्हारी यह आदत कब छूटेगी. किराये पर रह रहे हैं हम लोग. कोई
अपना मकान नहीं है. एहसान मानो, अशरफ़ भाई का, जो उनकी कोशिश से अच्छी कॉलोनी में
मकान मिल गया. वह तो रंग-रंगाई करने आये थे, इस घर की. मालूम किया खाली पड़ा है तो मौक़े
से मिल गया. वरना वही जुआँरीयों शराबियों का मोहल्ला था, सड़ने को, उठते बैठते घर
से निकलना मुश्किल.”
“मम्मी अब आप लेक्चर मत दो. मेरा सर पहले ही दुःख रहा है.”
“क्यों न बोलूं ...तुमने सबके बच्चों की देखभाल का ठेका ले रखा है क्या?” मम्मी
ने उसका सोफे पर पड़ा हुआ बैग उठाया और साथ ही साथ उसकी सैंडल किनारे करने लगीं.
“मम्मी मैं देखकर चुप नहीं रह सकती. मेरा तो दिल हो रहा था कि साले को थप्पड़
लगा दूं.”
“तुम कब तक यह सनक पाले रहोगी कृष्णा. जिनके बच्चे हैं उनको सम्हालें दो न... तुम
कौन होती हो.., दख़ल देने वाली.”
“हाँ तो देखकर भी आँखे बंद कर लूं? मुह फेर लूं.”
“सनकी बोलते हैं सब तुमको, मालूम है. हर बात में सनक. अब तो कोई रिश्ते तक
नहीं बताता कब तक यह सनक रहेगी. मुझे तुम्हारी शादी की फिकर है.”
“हाँ नहीं करना शादी. अब मुझे छोड़ दो.एक तो चप्पल भी टूट गई आज.”
“ठीक है. जो दिल चाहे करो. कोई कहता सनकी है कृष्णा कोई कहता उपरी असर है उस
पर.”
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भरी दोपहरी में कृष्णा उस घर में झाकने की कोशिश कर रही थी. वह दरवाज़े की
ग्रिल से अंदर यहाँ वहां देखना चाह रही थी.
“जी आप इस तरह से कैसे झाँक रहीं हैं. अन्दर आ जाओ.” सरला देवी ने, मोटे फ्रेम
का चश्मा लगाये, हाथ में बैग लिए सलवार कमीज़ वाली कृष्णा को घर के दरवाज़े से अन्दर
झाकता हुआ देखकर कहा. एक पल के लिए वह झिझक सी गई. उसको ऐसा महसूस हुआ कि जैसे
उसकी चोरी पकड़ी गई. फिर वह खुद को सम्हालती हुई , थोडा असहज होकर अन्दर दाख़िल हो
गई.
“हाँ जी बोलो.”
“वह मैं..,एक बच्ची रहती है न यहाँ...” कृष्णा ने यहाँ वहां देखते हुए सवाल
किया.
“हाँ लेकिन उसको पोलियो ख़ुराक की ज़रुरत नहीं है.”
“अरे नहीं नहीं वह तो मैं बस देख रही थी कि वह ठीक तो है न.., अरे यह किसकी
फोटो है.”
उसकी नज़रें अभी भी यहाँ वहां उस बच्ची को ढूंड रहीं थीं लेकिन उसकी नज़र सामने
दीवार पर लगी पुरानी तस्वीर पर जाकर अटक गई.
“यह मैं हूँ.”
“आप..आप सरला मैडम हैं न. सिटी मोंटेसरी स्कूल..” कृष्णा ने किसी बच्चे की तरह
चहकते हुए सवाल किया.
“हाँ मैं सरला ही हूँ. लेकिन आप कौन?”
“अरे आपने पहचाना नहीं मैं कृष्णा पांचवी क्लास में पढ़ती थी. तब आप सिटी
मोंटेसरी स्कूल की प्रिन्सिपल थीं.”
“हा हा.. शायद मैं भूल गई. इतना वक़्त भी तो हो गया है. इतने सारे बच्चों में याद रखना भी तो मुश्किल होता है.”
“कोई बात नहीं मैडम. मुझे अक्सर लोग भूल ही जाते हैं. अचानक मैं स्कूल छोड़ दी थी.
वैसे वह बच्ची कौन है?” कृष्णा बोले ही जा रही थी. किसी अपने से अचानक इस तरह से अरसे
बाद मुलाक़ात हो जाएगी उसने सोचा नहीं था.
“आराम से आराम से सांस ले लो., बैठो मैं पानी लेकर आती हूँ. वह मेरी पोती गुनगुन है.” सरला मैडम जवाब देते
हुए फ्रिज की तरफ़ बढ़ गईं लेकिन कृष्णा कहाँ बैठने वाली थी वह बाकी तस्वीरों को
देखती हुई कमरे के अन्दर झाँकने लगी.”
“यह लो पानी.”
“आं..हाँ.. सॉरी.” कृष्णा परदे के पास से ऐसे उछली कि जैसे उसको बिजली का झटका
लगा हो. उसने पानी का गिलास लेते हुए कहा. फिर वह वहीँ सोफे पर बैठ गई.
“वह आपकी पोती गुनगुन कहाँ है?”
“गुनगुन स्कूल से आती ही होगी.”
“सॉरी उस दिन मुझे इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए थे.”
“नहीं. तुमने बिलकुल ठीक किया. उस दिन के बाद से मैंने सिद्धार्थ के दोस्त
मोहित का घर के अन्दर आना बंद कर दिया. और गुनगुन से तो मेरी ग़ैर मौजूदगी में अब
कोई नहीं मिल सकता.”
“जी बहुत सही किया. पता है मुझे बहुत फिकर थी. वैसे उसकी मम्मी कहाँ हैं दिख
नहीं रहीं? कहीं गईं हैं क्या?”
“दरअसल गुनगुन की मम्मी नहीं हैं.” सरला मैडम ने एक बनावटी सी मुस्कान के साथ,
अपनी तकलीफ़ को छुपाते हुए जवाब दिया .
“ओह आई एम् सो सॉरी मैडम.”
“दो साल पहले गुनगुन की मम्मी की अचानक तबियत ख़राब हुई, पता ही नहीं चल पाया
उनको क्या बीमारी थी. कुछ ही महीनों में वह हम सबको छोड़कर चली गई. खैर..छोड़ों इन
बातों को, तुम बताओ क्या करती हो आजकल?”
“मैं यहीं पास में, एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ. मुझे बहुत अच्छा लगता है
बच्चो के साथ रहना. साथ ही साथ सी ए के एग्जाम की
भी तैयारी कर रही हूँ.”
“अरे वाह सही है. क्लियर हो जाए तो मिलने ज़रूर आना.”
“अरे क्यों नहीं आउंगी, आपका आशीर्वाद बस बना रहे, अच्छा मैं चलती हूँ.”
कृष्णा गिलास रखती हुई, इधर उधर देखते हुए खड़ी हो गई.
“ठीक है. कृष्णा आती रहना.”
“जी ज़रूर. मैं यहीं रहती हूँ गली की मोड़ से पहले वह छोटा सा घर है न.. पीले रंग का वहीँ.”
“ठीक है कृष्णा.”
“अच्छा सलाम.., ही ही ही देखो..मेरी आदत पड़ गई, वह मेरी दोस्त हैं न.., तो
मुझे याद ही नहीं रहता किसको नमस्ते करना है किसको सलाम.” कृष्णा ने अपना बैग उठाते
हुए दुपट्टा सम्हाला. सरला देवी धीरे से मुस्कुरा दीं.
“कोई बात नहीं कृष्णा. वक़्त मिले तो फिर आना.”
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मैं कृष्णा से आज से लघभग बारह साल पहले मिलीं थीं. यकीन
नहीं हो रहा था. वह आज भी बिलकुल वैसी ही थी. हमेशा कंफ्यूज सी दिखती. कुछ का कुछ
बोलती. पढने लिखने में उस वक़्त बहुत तेज़ थी. देख कर लग रहा था कि इस मामले में
भी वह आज भी मेरी उम्मीद पर पूरी खरी थी. कुछ ही देर में मैं गुनगुन को स्कूल से
लेकर आ गई थीं.
इस तरह से कई दिन तक कृष्णा गुनगुन से मिलने आती रही. उसने बताया कि उसके पिता
की कई साल पहले शराब पीने से मौत हो गई थी. अब वह अपनी माँ के साथ रहती है. सरला
देवी और उनकी पुरानी स्टूडेंट कृष्णा दोनों कम दिनों में काफ़ी घुल मिल गए. साथ ही
साथ गुनगुन को भी कृष्णा के साथ खेलना बहुत पसंद था.
सरला देवी ने सिद्धार्थ की शादी कृष्णा से करना चाहती थीं. लेकिन सिद्धार्थ
किसी भी तरह से राज़ी नहीं था. लेकिन इस बार सरला देवी भी अपनी ज़िद पर अड़ी हुईं
थीं.
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‘पता नहीं सिद्धार्थ कहाँ रह गया. कितना वक़्त हो गया इंतज़ार करते हुए. अभी से मुझको
इंतज़ार करवा रहे हैं, शादी के बाद क्या होगा पता नहीं.’ सोचते हुए कृष्णा यहाँ
वहां देख रही थी.
“मैम आप कुछ लेंगी.” एक वेटर ने बेहद शालीनता से झुककर कृष्णा से पूछा.
“हाँ सर.. दरअसल मैं.. किसी का इंतज़ार कर रहीं हूँ.”
“इट्स ओके मैडम टेक योर टाइम.” वेटर मुस्कुराकर वहां से चला गया. कृष्णा एक
बार फिर अपने ख्यालों में खो गई.
‘पता नहीं मैं कैसी दिख रहीं हूँ. शायद मुझे सलवार कमीज़ में नहीं जीन्स टॉप
पहन कर आना चाहिए था. उसको अच्छा लगता, खैर जाने दो. इतना सब नहीं सोचना चाहिए.
शादी के बाद जैसा बोलेगा वैसा उसकी ख़ुशी के लिए पहन लूंगी. मुझे उसको चोकलेट देना
चाहिए, या शायद नहीं. चोकलेट क्या वह बच्चा है. मुझे कुछ और लाना चाहिए था उसके
लिए. लेकिन उसने भी तो अचानक फ़ोन किया. अब मैं क्या करती.., खैर मैं यह सब क्या
स्टुपिड सा क्यों सोच रहीं हूँ. मुझे नार्मल दिखना चाहिए. मैं उसके साथ एक सेल्फी लूंगी. नहीं शायद वह बुरा
मान जाये. इसमें बुरा मानने की क्या बात है, उफ़ मैं फिर शुरू हो गई. उफ्फ मुझे
नार्मल दिखना चाहिए. प्लीज़ मुझे कंफ्यूज़ मत होने देना... प्लीज़.
“हाय” कृष्णा सिद्धार्थ को देखकर अपनी चेयर से खड़ी हो गई.
“हाय. कैसी हो?” सिद्धार्थ ने मुस्कुराकर उसके सामने बैठते हुए कहा.
“पता नहीं बहुत ज्यादह नर्वस हूँ. पता है मैं इस तरह से कभी किसी से मिलने
नहीं आईं न.. इस लिए , मैं यहाँ आपका आधे घंटे से इंतज़ार कर रहीं हूँ.” आदत के
अनुसार कृष्णा शुरू हो गई.
“सॉरी दरअसल ऑफिस से निकलते निकलते देर हो गई थी.” सिद्धार्थ ने अपनी वाइट
शर्ट की आस्तीनों को ऊपर करते हुए पहले कलाई घड़ी को हल्का सा झटका देकर ठीक किया
फिर मेनू कार्ड को उठा लिया.
“कोई नहीं.”
“क्या लोगी आप...कॉफ़ी..?”
“अम्म..मैं कॉफ़ी ले लूंगी.”
“ठीक है मैं कैपेचीनो लूँगा. और आप?”
“मैं भी कैपीचीनो ले लूंगी.” सिद्धार्थ ने कॉफ़ी के लिए आर्डर दिया. कृष्णा
उसके सामने बैठी मुस्कुरा रही थी. उसने सर हिलाकर सहमती जताई. दरअसल वह अपनी
घबराहट को छुपाने की कोशिश कर रही थी.
“पता है ..कोई लड़का मुझे पसंद ही नहीं करता है. जिसको देखो बस टाइम पास जैसा
सोचता है. क्या मैं टाइम पास लड़की जैसी दिखती हूँ..? और अभी देखो आपने मुझे पसंद
कर लिया?”
“नहीं कृष्णा आप बिलकुल भी टाइम पास जैसी नहीं दिखती हो, लेकिन दरअसल बात यह
है कि आपको मैंने नहीं मम्मी ने पसंद किया है.” सिद्धार्थ ने थोड़ा नज़रें चुराते हुए
उसको जवाब दिया. वेटर ने दो कैपेचिनो उनके सामने लाकर रख दीं थीं. सिद्धार्थ शुगर
का पाउच फाड़ने लगा. उसको देखकर कृष्णा ने भी एक पाउच उठा लिया.
“हाँ मालूम है. कोई कुछ भी सोचे तो सोचने दो मैं टाइमपास थोड़ी हूँ.”
“हाँ मम्मी ने बहुत कुछ बताया आपक बारे में, इतने कम टाइम में गुनगुन तो जैसे
आपकी दीवानी सी ही गई है. लेकिन बात दरअसल यह है कृष्णा कि मैं शादी नहीं करना चाहता हूँ. मम्मी बहुत ज्यादह फ़ोर्स कर
रहीं है. इस लिए मैं उनसे न नहीं कह नहीं
प् रहा हूँ.”
“आपकी मम्मी ने कहा था कि आप उनकी हर बात मानते हो? और आप राज़ी हो?”
“नहीं कृष्णा मैं राज़ी नहीं हूँ, इसी लिए मैंने तुमको यहाँ बुलाया था. ऐसा
नहीं है कि मैं तुमको रिजेक्ट कर रहा हूँ, बस मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं
है.”
“ठीक है..सिद्धार्थ जी..इट्स ओके.” कृष्णा को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे
उसके आस पास की सारी दुनियां उस पर ज़ोर ज़ोर से हस रही है. बेहद धीरे से उसने यहाँ
वहाँ देखते हुए उसने चेहरे पर बार बार आ रही बालों की लट को दुरुस्त किया.
“सॉरी कृष्णा तुमको तकलीफ़ नहीं देना चाहता था लेकिन क्या करूँ.”
“कोई बात नहीं सिद्धार्थ जी. होता है. मैंने बताया न आपको मुझे कोई लड़का पसंद
ही नहीं करता है.”
“नहीं ऐसा मत सोचो. आप बहुत अच्छी हो.” कृष्णा ख़ामोश हो गई. वह सोच नहीं प्
रही थी कि आगे क्या बोले. ऐसी ही कैफ़ियत कुछ सिद्धार्थ की भी थी. उसने कॉफ़ी का कप
होंठो से लगा लिया. कृष्णा कॉफ़ी में बने दिल के आकार को स्पून से धीरे धीरे मिटा
रही थी. उनके बीच ख़ामोशी सी पसरी हुई थी.
“सिद्धार्थ जी?”
“हाँ कृष्णा?”
“यह चोकलेट.., गुनगुन को दे दीजियेगा.” कृष्णा ने अपने बैग से चोकलेट निकाल कर
सिद्धार्थ की तरफ बढ़ाया. उसने धीमी मुस्कान के साथ ले लिया “ओह थैंक्स ज़रूर.” एक बार फिर उनके बीच ख़ामोशी पसर गई.
“अच्छा मैं चलती हूँ.”
“मैं छोड़ देता हूँ.”
“नहीं मैं ऑटो ले लूंगी.”
कुछ ही देर में कृष्णा ऑटो में थी. ऐसा लग रहा था कि जिंदगी की किताब में कुछ
हिस्से अचानक से बे वजह आकर जुड़ जाते हैं. जो सम्हाले सम्हलते नहीं, और भूले भूलते
नहीं हैं. हम इंसान कितने बेबकूफ़ होते हैं. जैसे हम भविष्य को पढ़ना जानते हों, सब
कुछ जानकार भी वक़्त से आगे निकलकर ख़्वाबों की दुनियां में जीना चाहते हैं. पल भर
में क्या क्या सोच लेते हैं. और अगले ही पल जब हमारा सामना वक़्त से होता है. तो
हमको अपने वजूद का एहसास होता है. ऑटो में बैठी कृष्णा का भावहीन चेहरा जैसे ख़ुद
से ही कई सवाल कर रहा था. जो अभी कुछ देर पहले खिला खिला शरमाया सा था वह अब पतझड़
के जैसा मुरझा कर पीला सा हो गया था. आँखों की चमक में आंसुओं की धुंधलाहट थी. दिल
में ख़ामोश सिसकियाँ और दुनियां से एक नाराज़गी.
बुरा तो थोड़ा सिद्धार्थ को भी लगा था, लेकिन तनूजा की सलाह से उसने कृष्णा के
चैप्टर को बेहद आसानी से खत्म कर दिया था.
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घर में कई दिन से तनाव बना हुआ था. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन घर में
कृष्णा का ज़िक्र न होता हो. और फिर वही दुनियां भर की हाय तौबा. सिद्धार्थ घर आया
उसने चोकलेट का पाउच गुनगुन की तरफ़ बढ़ा दिया.
“यह लो गुनगुन.”
“यह वाली नहीं ..आप तो हमेशा मुझे डेरीमिल्क वाला चोकलेट देते हो? फिर आज
लिटिल हर्ट्स वाली क्यों पापा?”
“यह आपकी दोस्त ने भेजी है आपके लिए.” सिद्धार्थ ने चोकलेट का पाउच गुनगुन को
दिया और कपड़े बदल कर वाशरूम की तरफ बढ़ गया. मना तो कर दिया था कृष्णा को लेकिन दिल
में जैसे एक अजीब सी बेचैनी थी. तनूजा उसके लिए चाय बनाने लगी. सरला देवी अपनी
आराम कुर्सी पर ही बैठी सब देखतीं रहीं.
दरअसल कहीं न कहीं वह सिद्धार्थ से नाराज़ थीं. लेकिन ऐसा दिखाना नहीं चाहती थीं.
कुछ ही देर में वह लोग चाय के साथ बरामदें में मौजूद थे. लेकिन उनके बीच अभी
भी एक ख़ामोशी सी पसरी हुई थी. सिद्धार्थ मम्मी की नाराज़गी को बाख़ूबी समझ रहा था.
“आप लोगो को कल कृष्णा के घर जाना है?” सिद्धार्थ ने ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा.
“शायद नहीं. कुछ देर पहले उसका कॉल आया था. वह राज़ी नहीं है, इस रिश्ते से.”
“ओह ऐसा चलो ठीक ही है.” सिद्धार्थ ने नज़रें बचाते हुए जवाब दिया. सरला देवी
ख़ामोश ही रहीं.
“दादी देखो, कृष्णा ने मेरे लिए चोकलेट भेजे.” चहकते हुए गुनगुन ने चोकलेट का
पाउच दादी की गोदी में रख दिया.
“सच में सिद्धार्थ आज मुझे यक़ीन हो गया, वाक़ई कृष्णा पागल ही है. कितनी आसानी
से उसने कॉल करके तुमको बचा लिया.” सिद्धार्थ और तनूजा दोनों ख़ामोश एक दूसरे का
मुह देख रहे थे.
“मिल लिए उससे. वह इस घर में नहीं आ सकी लेकिन देखो, इस घर की सुख शांति की
उसको फिकर है.”
“जी...”
“कोई बात नहीं, मैं तुमपर कोई बोझ नहीं डालना चाहती मैं तो सिर्फ गुनगुन की
वजह से इतना फ़ोर्स कर रहीं थीं. तुम लोग बैठो, चाय पीओ मैं आती हूँ.” सरला देवी उठकर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गईं. कुछ ही
देर में उसने हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का पुराना संदूक था. उसमे लगा ताला जैसे कई सालों
से नहीं खोला गया था. यही वजह थी कि वह कई बार कोशिश करने के बाद भी नहीं खुल रहा
था. सिद्धार्थ ने माँ के हाथ से चाबी ली और खुद कोशिश करने लगा.
“भैय्या रुको मैं केरोसिन आयल डालती हूँ.” कहते हुए तनूजा ने ताले पर कुछ तेल
उंडेल दिया. आख़िरकार कुछ मिनट की जद्दोजहद के बाद ताला खुल ही गया. तनूजा और
सिद्धार्थ उसको बेहद आशचर्य से देख रहे थे.
सरला देवी ने उसमे एक एक पुरानी फोटो उठा ली. श्वेत श्याम धुंधली सी उस फ़ोटो
को साफ़ करने पर दिखाई दिया कि वह स्कूल की ग्रुपिंग थी.
‘सिटी मांटेसरी स्कूल 1990-91’
“ओह मम्मी यह तो बहुत पुरानी है. जब हम कानपुर में रहते थे.”
“हाँ. उस वक़्त मैं इस स्कूल की प्रिंसपल थीं. यह मेरे पास जो लड़की खड़ी है इसको
पहचानों?” सरला देवी ने सिद्धार्थ और तनूजा
की तरफ़ उस फ्रेम की हुई फोटो को बढ़ाते हुए कहा.”
“इतनी पुरनी फोटो कैसे पहचानूँ?”
“आपकी कोई ब्रिलिएंट स्टूडेंट रही होगी तभी इतनी पास चिपकी खड़ी है जैसे गोद
में ही बैठ जाएगी.” सिद्धार्थ ने हँसते हुए मम्मी का मज़ाक उड़ाया तीनो लोग बारी
बारी से फोटो देखते हुए हस दिए.
“अब बताओ भी न कौन है, आप पूरा फ़िल्मी हो गई हो मम्मी. सस्पेंस बना रही हो.”
तनूजा ने सिद्धार्थ के हाथ से तस्वीर खीचते हुए कहा. दरअसल उन दोनों का मकसद घर
में पसरे हुए तनाव को कम करना था. सरला देवी धीरे से मुस्कुरा दीं.
“यह कृष्णा है.”
“अच्छा यह वही है. आपकी स्टूडेंट है वह?” तनूजा ने अशर्याचाकित होते हुए कहा.
उसने वापस तस्वीर ले ली और दोनों भाई बहन उसमे सर झुका कर देखने लगे.
“हाँ यह वही है.”
“मम्मी..मुझे याद है. यह तो कभी-कभी घर पर आकर भी खेलती थी.”
“हाँ यह वही है.”
“फिर अचानक चली गई थी.”
“आपकी स्टूडेंट है तो इस चक्कर में आप इसकी शादी मुझसे करवाना चाहती हो, वाह
बहुत सही. आपकी स्टूडेंट थी. बस इस लिए.”
“नहीं सिद्धार्थ. यह पढ़ो.” सरला देवी ने स्कूल की उस पुरानी सी नोटबुक को
सिद्धार्थ को थमा दिया.
‘कृष्णा कुमारी कक्षा V सेक्शन A सिटी
मोंटेसरी स्कूल.’
“यह उसकी ही है.”
“हाँ आख़िरी पेज पढो.” उस पुरानी सी नोटबुक को खोलकर सिद्धार्थ आखिरी पन्ने को
पढ़ने लगा. .
‘भगवान् प्लीज़ सरला मैडम को मेरी मम्मी बना दो.’ पेंसिल से लिखी उस लाइन को
सिद्धार्थ और तनूजा ने ठहर ठहर कर पढ़ा.
“उफ़ मम्मी. वह ऐसा क्यों सोचती थी. क्या हुआ था?” तनूजा ने आश्चर्य से पूछा.
“कृष्णा बहुत प्यारी लड़की है सिद्धार्थ. दिल तो नहीं चाहता कि उसके बचपन के
दिनों को दोहराऊं, लेकिन मैं खुद न जाने कब से इस बोझ को लेकर जी रही हूँ. अब वह
अचानक जब मिल गई तो ऐसा लगा मेरे अन्दर एक जान सी पड़ गई है.
‘उन दिनों मैं सिटी मोंटेसरी स्कूल में प्रिंसपल के पद पर थी. तब वहां हिंदी
की एक टीचर आशा थीं. वह कृष्णा को मेरे पास उसकी नोटबुक के साथ लेकर आईं थीं.
‘भगवान् प्लीज़ सरला मैडम को मेरी मम्मी बना दो.’
उन्होंने मुझे यह लिखा हुआ दिखाया. मैं
भी बिना मुस्कुराए न रह सकीं. अक्सर छोटे बच्चे अपने टीचर से भावात्मक रूप से जुड़
जाते हैं. सोचकर मैंने उस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी.
कृष्णा पढ़ने लिखने में काफ़ी तेज़ थी. लेकिन धीरे-धीरे उसके स्वाभाव में बदलाव
सा आने लगा. वह चुप चुप सी रहने लगी. अक्सर बच्चे घर से स्कूल जाने पर रोते हैं, लेकिन
इसके उलट वह छुट्टी की घंटी सुनकर सहम जाती थी. और घर न जाने के लिए ज़िद करती.
शुरू-शुरू में तो मैं समझ ही नहीं पाई. लेकिन एक दिन जब उसने मेरे पैरों से लिपट
कर कहा कि मुझे घर नहीं जाना है, आपके पास रहना है. तो मैं सोच में पड़ गई. कि आख़िर
ऐसा क्या है कि वह घर नहीं जाना चाहती है.
अगले दिन मैंने उसकी माँ को बुलाकर इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने सब कुछ
सामान्य ही बताया. लेकिन कृष्णा का डर अभी भी क़ायम था. छुट्टी होते ही घर जाने के
नाम से वह सिसकने लगती थी.
तब मैं उसको अपने साथ लेकर आ गई. वह सारा दिन खेलती रही, लकिन जब मैंने उसको
घर जाने के बारे में बात की तो वह एक बार फिर से सुबकने लगी. जब मैंने उसको बहला
कर घर न जाने का कारण जानना चाहा, तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरा सारा जिस्म एक
अनजाने खौफ़ से काँप उठा. जैसे किसी ने मेरी आत्मा को भीचकर निचोड़ दिया हो.
“कृष्णा के साथ क्या हुआ था मम्मी.” सिद्धार्थ और तनूजा के चेहरों पर जैसे
सैकड़ों सवाल बन बिगड़ रहे थे.
“कृष्णा ने मुझे बताया कि उसका मामा उसके साथ गन्दी हरकते करता है. वह उसको
नीचे हाथ लगाता है. जब घर में कोई नहीं होता है तो वह खेलने के बहाने से उसके कपड़े
निकालता है.”
“उफ़्फ़ मम्मी. छी ..हे भगवान्.”
“उस शाम मैंने कृष्णा को उसकी मम्मी के साथ बहला कर वापस भेज दिया. अगले दिन
मैंने उसके मम्मी पापा को बुलाकर सारी बात
बताई. उनको इस मामले में पुलिस को कंप्लेंट करने की सलाह दी. लेकिन वह लोग कम पढ़े
लिखे ग़रीब परिवार से थे. एक आम भारतीय से भी ज्यादह डरे हुए, जो पुलिस से भी उतना
ही डरता है जितना बदमाश से. उन्होंने इस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया. मान मर्यादा
घर की बात ग़रीबी इज्ज़त जैसी न जाने कितनी बाते बोलते हुए उन्होंने मेरे सामने हाथ
जोड़ दिए.
अफ़सोस मैं कुछ न कह सकी. उस दिन के बाद से कृष्णा स्कूल नहीं आई. मैंने मालूम
किया, तो पता लगा वह लोग किराए पर रहते थे. और घर छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले गये
थे.
कृष्णा की वह नोटबुक मेरे पास थी. मेरी जैसे रातों की नींद उड़ गई थी. मैं
बेचैन सी रहने लगी थीं. आख़िरकार मैंने भी अपने पद से इस्तीफ़ा देकर उस स्कूल से मुह
मोड़ लिया. लेकिन आजतक उस बच्ची को भूल नहीं पाई. जो भगवान् से यही प्रर्थना करती
थी कि भगवान् सरला मैडम को उसकी माँ बना दे.
मेरी हर प्रार्थना में कृष्णा रहती थी. मैं उसकी कुशलता की दुआ मांगती. मैं
उससे मिलने के लिए बेचैन रहती लेकिन वह कभी लौटकर नहीं आई. न कभी मैं कृष्णा की
माँ बन पाई, और न वह कभी मेरी बेटी बन सकी.” दिन बीतते गए मेरी प्रार्थना
धीरे-धीरे कम होती गई. एक वक़्त ऐसा आया कि मेरा परमेश्वर पर से विश्वास ही उठ गया.”
सरला देवी ने अपना चश्मा उतार कर एक बनावटी मुस्कान देना चाही. लेकिन कामयाब नहीं
हो सकीं. साथ बैठी तनूजा ने अपने हाथ मम्मी के गले में डाल दिए. मम्मी के दिल का
दर्द दोनों बच्चों की आँखों से नमी बनकर चमक रहा था.
“आई लव यू ममा.”
“आज इतने सालों के बाद अचानक कृष्णा मेरे सामने आ गई, जैसे परमेश्वेर से मेरा खोया
हुआ विश्वास वापस आ गया. मैं आज़ाद हो गई एक अपराधबोध की जिंदगी से.
मेरी उससे कई दिन तक बात हुई. मैंने जाना कि वह सनकी या झक्की नहीं है. वह भी
बाक़ी लोगो के जैसी ही सामान्य है. बस उसको एक डर जो बचपन से ही उसके दिमाग में घर
बनाये बैठा है कि कहीं कोई किसी बच्चे के साथ वही सब तो नहीं कर रहा जो बचपन में
उसके साथ हुआ था. इसी लिए वह सामने पड़ने वाले हर बच्चे को ग़ैर से देखती है. उससे
मिलने की, बात करने की कोशिश करती है. जिस प्यार से वह महरूम रही वही प्यार बच्चों
पर लुटाना चाहती है.”
“मैं कृष्णा..
“कोई बात नहीं सिद्धार्थ, तुमने उसको इनकार कर दिया. लेकिन उस दिन अगर वक़्त पर
कृष्णा न आती तो हमारी गुनगुन भी जीवन भर कृष्णा बनकर ही जीती, और किसी को कानो
कान ख़बर तक नहीं होती. तुमको क्या फर्क पड़ता. तुम तो बस ऐसे ही खुद से भागते हुए
ख़ालीपन के साथ जीते रहोगे. क्या मुझे तुम्हारे बंद लबों के पीछे ख़ामोश उदासी दिखाई
नहीं देती...”
सरला देवी अपनी बात खत्म करके ख़ामोश हो गईं. सिद्धार्थ और तनूजा अभी भी जैसे खोये
हुए थे. कृष्णा के बचपन की उन सियाह काली यादों को सुनकर उनके पास कहने के लिए अब
कुछ नहीं बचा था.
“आई ऍम सॉरी मम्मी.., मैंने भी कृष्णा को वही समझा जैसा लोगो ने उसके बारे में
कहा.”
सिद्धार्थ ने अफ़सोस से अपना सर झुका
लिया. सरला देवी ख़ामोश रहीं.
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और फिर कुछ दिनों के बाद वही हुआ जिसका पूरे सोसाइटी को डर था.
मेहंदी से भरे हाथ और सुर्ख जोड़े में कृष्णा सुहागरात की सेज पर दुल्हन बनी
बैठी थी. उसका रंग रूप मासूमियत ऐसी थी कि किसी को भी एक पल में दीवाना बना दे.
सिद्धार्थ बेड के एक कोने पर बैठा मुस्कुरा रहा था. वह गुनगुन के साथ खेल रही थी.
“कृष्णा शायद गुनगुन को नींद आ रही है.” सिद्धार्थ ने उबासी लेते हुए कहा.
“नहीं मम्मी के साथ खेलना है.” कृष्णा से पहले गुनगुन ने तपाक से जवाब दिया.
दोनों खिलखिला कर हस दीं. सिद्धार्थ भी बिना मुस्कुरये न रह सका.
“ठीक है अगर थोड़ा बहुत प्यार गुनगुन से बच जाता है तो, मुझे भी अपने साथ खिला
लेना.” कहते हुए सिद्धार्थ वहीँ उसके पैरों के पास पसर गया.
और क्या कहूँ.. बस कृष्णा ऐसी ही थी.
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