Tuesday, October 16, 2018

Tumse kisne puchha book

http://bit.do/eyKBF

Tumse kisne puchha


Usman Vai Apka book mere hat ma a geye.
Bangladesh ma bethakar apka book mere hat ma aya isiliye ma jada khus hu.West Bengal ka Do vai milkar
ane k bad gift kar
diya mujhe.Yeh book padakar i think mera hindi spelling ki bari ma gyan aa jayega.aur kuch sikhunga life k liye....
🇧🇩🇮🇳

Wednesday, September 19, 2018

Kindle link - https://www.amazon.in/dp/B07GD3WMQH

Doctor Rupali Tiwari

"तुमसे किसने पूछा"https://amzn.to/2p9dLQ7

किताब :- 
    तुमसे किसने पूछा.
ISBN 10:- 978-93-87390-23-2
लेखक:-        उस्मान खान
प्रष्ट संख्या :-  180
मूल्य:-          120
प्रकाशक:- अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद
समीक्षक:-डॉक्टर रुपाली तिवारी.


'कभी कभी ऐसा भी होता है कि बहुत सारी अच्छी किताबें हम तक नहीं पहुच पाती है। 
Usman khan की किताब "H 2So4 एक प्रेम कहानी" उनमें से एक ही है।
एसिड अटैक जैसे मुद्दे को केंद्र में रख कर इतनी अच्छी नावेल रच देना आसान काम नहीं है। 
अपनी ग़ज़ब की कहानी के साथ एक बेहद खूबसूरत किताब है यह। पढ़ने का शौक़ हो तो इसको बिल्कुल छोड़ना नहीं l

A book Based on Acid Attack

"जीने की जो छोटी सी ही,
एक तमन्ना जताई थी! 
लुटाने को कुछ भी न था,
गंवानी पूरी खुदाई थी!"
उस्मान खान भाई! आपकी किताब स्टॉलों से देखते ही उठाने वाली है! कारण जिस समाज में हम रहते हैं वहां लड़की का चेहरा उसकी पहचान से ज्यादा उसकी ज़रूरत है! एसिड अटैक पर लिखी इस किताब के कवर पर जिनकी फोटो है, मैं उन्हें नहीं जानता, उस्मान भाई बेहतर बतायेंगे, मगर जीवन्तता, जीवटता और इस मुस्कान के लिये शब्द मेरे पास तो नहीं🙏 हम सब चाहे जितना भी आदर्शवादी बन लें मगर सामने से स्वीकारने में बड़े बड़े के आदर्श सूखे पत्ते हो जाते हैं! ये मुस्कान उन्हीं छद्म आदर्शवादियों के मुंह पर तमाचा है! जीने के लिये हौसला चाहिये, हिम्मत चाहिये जो इनमें असीमित है! एसिड अटैक पीड़िता को तकलीफ सिर्फ उसका दर्द नहीं देता, दर्द देता है खोखलेपन से भरे रिश्तों का मौका पड़ने पर मुकर जाना, मुंह फेर लेना! उस्मान साहब आपने बेहतरीन तरीके से रिश्ते गढ़े हैं, काबिले तारीफ!
त्याग, समर्पण, इच्छायें, समाज का दोगलापन, चरित्रों का रंग बदलना, और कई चीज़ें पठनीय बनाती हैं इस उपन्यास को! मध्यम वर्गीय परिवेश में ज़बरदस्त तानाबाना बुना है! पात्र और चरित्र बनावटी नहीं हैं बिल्कुल भी! सच कहें जुबैदा और अली की प्रेम कहानी अपने आप में बेमिसाल है, क्योंकि आपने उस समाज का चेहरा दिखाया है जो चाहते तो हैं हम कि ऐसा होना चाहिये मगर उसके लिये सिर्फ बातें ही होती हैं हमारे पास, उसका हिस्सा बन पाना सबके बस की बात नहीं!
नॉवेल बड़ा है और गल्तियां ढूँढने शायद हम किसी भी किताब में नहीं बैठते क्योंकि पाठक बनकर पढ़ना अच्छा लगता है!!

साक्षात्कार- 'तुमसे किसने पूछा.'


समीक्षक फुन्नु सिंह के सवाल –                               ‘तुमसे किसने पूछा’ के लेखक उस्मान खान के जवाब


01.सवाल:-किताब में ऐसी कौन सी बात ही जिसने आपको यह संग्रह लिखने पर मजबूर किया. इसे पाठक क्यों पढ़े?
जवाब:- जैसा कि मैंने किताब में भी कहा है, कि यह कहानियां मेरी अपनी न होकर समाज की हैं, जो समय समय पर दोहराई जाती रहीं हैं. लेकिन अच्छी कहानी या किताब वही है जो समाज को आइना दिखाएँ. साहित्यकार हो या लेखक, कहीं न कहीं वह समाज में व्याप्त बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ता रहता है. मेरी भी यही इस किताब के माध्यम से कोशिश है कि मैं समाज को कुछ सकरात्मक देकर जाऊं. अगर आप कुछ ऐसी कहानियां पढने के शौक़ीन हैं जो हमारे आसपास घटती हैं, लेकिन हम उन्हें नज़रंदाज़ कर देते हैं. तो यह किताब आपके लिए बेहद मुफीद है.
02सवाल:-‘फेकुआ हरामी’ मेरे ख़याल से आपके मन की खीज है. क्यों जिस तरह से सधी हुई शुरुआत हुई है कहानी आगे चलकर भटक जाती है. क्या आप इस बात से सहमत हैं?
‘तुमसे किसने पूछा’ किताब को पढ़कर कई लोगों ने ‘फेकुआ हरामी’ पात्र को हमारे समाज में आस पास रहने वाला ही किरदार बताया है. कुछ दिन पहले जानी मानी लेखिका और अनुवादक रचना भोला यामिनी जी ने भी यही बात कही. तो यह मन की खीज नहीं, ग़रीब मुस्लिम समाज के कई घरों की सच्चाई है, जहाँ लोग इस्लाम की असल बातों से दूर रहकर, कम इल्मी की वजह से कथिक पीर जी और मियां जी के चंगुल में गिरफ्त हैं. बाकि कहानी भटक जाती है ऐसा तो मुझे नहीं महसूस हुआ लेकिन कई लोगों की शिकायत रही कि कहानी अधूरी सी जान पड़ती है. जिससे मैं पूरी तरह से सहमत हूँ. भविष्य में इसके आगे का पार्ट लिखे जाने की पूरी गुंजाईश है.
03.सवाल:- फेसबुक पर मौजूद लेखकों में आप किसे बार बार पढ़ना चाहेंगे? क्या आप फुन्नु सिंह द्वारा दिए गए रेटिंग से सहमत हैं?
किसी लेखक का फेसबुक पर मौजूद होने न होने से मैं उसके लेखन का आंकलन नहीं करता. हाँ अगर आपका इशारा नए लेखकों की तरफ है तो मैं नीलोत्पल और रश्मि रविशा जी को दोबारा पढ़ना चाहूँगा.
किताब का रिव्यु कई बार हमारी पसंद नापसंद पर भी होता है. रिव्यु बहुत अधिक किताब की बिक्री को प्रभावित नहीं करता. असल है आपका लेखन. मैं आपके रिव्यु से सहमत हूँ क्योकि यह आपके अपने विचार है.
मैं आपको याद दिलाऊं एक फ़िल्मी पत्रिका आती थी माधुरी जिसमे अरविन्द कुमार जी ने अगस्त 1975 में शोले फिल्म का रिव्यु ‘सबसे घटिया फिल्म बोलकर दिया था. और उसे अब तक की सबसे बकवास फिल्म घोषित किया था. जहाँ तक कि अमिताभ बच्चन साहब का रिव्यु में ज़िक्र तक नहीं था. आज शोले फिल्म के बारे में मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.
04.सवाल:-एक लेखक के पास दूसरों की अपेक्षा जज्बातों को समझने की क्षमता अधिक होती है. यदि आपको यहाँ से,इसी maturity के साथ आपको उम्र के  16वें साल में भेज दिया जाये, तो आप अपनी कौन सी भूल को सुधारना चाहेंगे और कौन सी गलती को फिर से दोहराना चाहेंगे?
मैं अपनी गर्लफ्रेंड से फिर से मिलना चाहूँगा. ताकि हम जीवन भर साथ रह सकते. प्यार करने की ग़लती को दोबारा दोहराना चाहूँगा.
05.सवाल:-यदि आपको देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाये तो, साहित्य के लिए आपका योगदान क्या होगा?
कुछ भी नहीं. तब मेरी प्राथमिकतायें और होंगी. जैसे जातिवाद और धार्मिक उन्माद ही देश की सबसे बड़ी समस्या है. इनका ख़ात्मा, कानून और शिक्षा के स्तर में सुधार. यह दोनों समस्याएँ हल हो गईं तो साहित्य अपने आप फलने फूलने लगेगा.
फिर भी सवाल आया है तो जवब देना होगा. मैं देखता हूँ कि अक्सर किसी साहित्कार को सम्मान या तो जीवन के अंतिम पड़ाव में मिलता है या उसके गुज़र जाने के बाद, ऐसा न होकर उसका सम्मान तब किया जाये जब वह साहित्य में उर्जावान हो. सम्मान के नाम पर हज़ार, लाख की चिल्लर न देकर उसकी सही आर्थिक मदद की जाये.


Monday, September 17, 2018

Cycle Magazine

पहला अंक आ चुका है !
'चकमक' की चिंगारी से बाल साहित्य को अलहदा पहचान दिलाने वाली टीम के सुशील शुक्‍ल ने साथियों के साथ 'प्लूटो' की यात्रा को भी शानदार बनाया। अब वे 'साइकिल' चलाने को तत्पर हैं। वे अकेले कहाँ हैं? आप हैं न 'साइकिल' के साथ?
15 सितम्‍बर 2018 की शाम 5 बजे बच्‍चों के लिए एक नई पत्रिका 'साइकिल' का विमोचन समन्‍वयन भवन,इंडियन कॉफी हाउस के बगल में, न्‍यू मार्केट,भोपाल में हो चुका है। प्लूटो की तरह यह पत्रिका तक्षशिला,बाल साहित्‍य एवं कला केन्‍द्र का प्रकाशन है।
पत्रिका के बारे में अधिक जानकारी 9109915118 पर या info@ektaraindia.in और www.ektaraindia.in से प्राप्‍त की जा सकती है।
पाठकों को बाल साहित्य का चस्का लगाने के के लिए अग्रिम बधाई तो बनती है !
ये Sushil Shukla और इकतारा टीम के साथ सभी के लिए यादगार दिन होगा।
Sushil Shukla , Shashi Sablok , Chandan Yadav,
पत्रिका के बारे में अधिक जानकारी 9109915118 पर या info@ektaraindia.in और www.ektaraindia.in से प्राप्‍त की जा सकती है।
मनोहर चमोली मनु जी की वाल से।
(मैंने तो इस पत्रिका की सदस्यता लेने का पूरा मन बना लिया हौ। अब आप सभी दोस्तों से गुज़ारिश है कि इस पोस्ट को ज़्यादः से ज़्यादः शेयर करें..,ताकि बच्चों की साईकल निरंतर चलती रहें.)

Tumse Kisne Puchha.Book

"तुमसे किसने पूछा"https://amzn.to/2p9dLQ7
किताब :-     तुमसे किसने पूछा.
ISBN 10:- 978-93-87390-23-2
लेखक:-        उस्मान खान
प्रष्ट संख्या :-  180
मूल्य:-          120
प्रकाशक:- अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद

समीक्षक:-पूजा रागिनी खरे
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इस कहानी की गठरी में जो कुछ ऐसा है जो पढ़ने वाले को सवाल भी देता है और जवाब भी। तभी तो इस संग्रह का नाम है "तुमसे किसने पूछा"
सबसे ईमानदारी इस किताब के लिए इसके लेखक महोदय की ये रही कि जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने उनकी ये किताब आर्डर की है तो उन्होंने सीधे लफ़्ज़ों में कहा कि आपको मेरी पहली किताब मंगवानी चाहिए थी वो ज्यादा अच्छी है। उस्मान साहब की ईमानदारी के लिए उनको साधुवाद। लेखक महोदय की ईमानदारी उनकी कहानियों में नज़र आती है।
आत्म कथ्य में लेखक ने लिखा है कि मेरी कहानियाँ मेरी नही हैं, यह अनुभव की पोटली है। अगर आज का लिखा , कल रक काम आ जाए तो समझो लिखना सार्थक हो गया। ये बहुत बड़ी बात है।
"बहता पानी" में कहते है कि हर कामयाबी के पीछे एक संघर्ष भरी कहानी होती है। कामयाबी यूं ही नही आपका दरवाजा खटखटाती। सत्य वचन ।
कहानी "भूत का बच्चा"- बहुत सरल कहानी लगी। सच मे ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। इस कहानी में अंत तक

रोचकता बनी रहती है।
हाँ मेरे हिस्से का सच हमे थोड़ा कम समझ आई।
चौथी कहानी है "कृष्णा"- जो कि मुझे इस पूरे कहानी संग्रह की जान लगी। कहानी की भाषा शैली, भावनात्मक तथ्य सब बहुत लाजवाब लगा।
"समय लकड़हारा" तो ऐसी लगी कि फुआ जैसा कोई हमारे आस पास का ही है। जो अपने अकेलेपन को बच्चों के कोलाहल से तोड़ता है। ये कहानी भी बहुत अच्छी है। "दिल्ली का पानी" शायद जो समाज मे हो रहा है उसी को बताता है। गोपाल बजी आज के समय की मानसिकता को बताता है। कुम्हैडी छुआछूत पर आधारित दो दोस्तों की प्यारी सी कहानी है। हाँ फेकुआ हरामी कहानी मुझे अधूरी सी लगी। साधुओं पीरों फकीरों के ढोंग से पर्दा उठाती एक उम्दा कहानी का अंत उसके प्रारम्भ से बिल्कुल अगल लगा। शायद उस्मान साहब इस कहानी का दूसरा भाग लिखें। तब जाकर ये कहानी अपना उद्देश्य पूरा कर पाए। तुमसे किसने पूछा कहानी का प्रवाह किसी फिल्म जैसा लगा। जिसमे रहस्य से पर्दा उठने पर नायक के लिए पाठक के मन मे श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। पूरा कहानी संग्रह पढ़ जाना चाहिए कृष्णा की ममता , फुआ के अकेलेपन, भूत का सच, गोपाल की दोहरी मानसिकता के लिए पढ़ना चाहिए। सीधे और सरल कहानियों के लिए पढ़ना चाहिए। बाकी न पढे जाने के बहुत बहाने हैं।
मैं न तो समीक्षक हूँ न कोई लेखिका इसलिए रेटिंग करना या समीक्षा करना मेरे बस का रोग नही है। बस जो लगा पढ़कर वही लिख दिया। बाकी तुमसे किसने पूछा?
Book Review bt-Puja Ragini Khare.[Manjari]

Hindi Diwas 14 November

हिन्दी का दायरा बढ़ रहा है। अब हिन्दी साहित्य से निकल कर जन जन तक पहुच रही है।
(हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं)

Acid Attack Book

H2So4 ek Prem Kahani.

Book name H2So4 Ek Prem Kahani.
ISBN 10:- 938396983
लेखक:-  उस्मान खान
प्रकाशक:- अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद
Book review by-Renu Singh.


#H2SO4एकप्रेमकहानी

एक ऐसा उपन्यास जिसमें प्रेम है, समर्पण है, सहनशीलता है, दर्द है और इन सबसे ज्यादा विश्वास है।
Usman Khan जी द्वारा रचित यह उपन्यास एक प्रेम कहानी पर आधारित हैं।एसिड अटैक जैसे कुकृत्य करने वाले मानसिक विकार से ग्रसित व समाज के कुछ कुंठित सोच रखने वालों कि कलई खोलती यह कहानी है- #जुबैदा और #अली की इनके अलावा सरे किरदारों को इतनी खूबसूरती से गढ़ा गया है कि आप खुद को इस कहानी का हिस्सा बनने से रोक नहीं पाएंगे ।
मै तो usman जी कि लेखनी की कायल हूँ । मैंने तो पढ़ी मुझे कहानी बहुत पसंद आई दुबारा रनिंग में है दोस्तों अगर आप भी पढ़ने के शौकीन हैं तो एक बार #H2SO4एकप्रेमकहानी जरूर पढ़िए । यकीन मानिये यह किताब आपको शुरू से आखिरी तक बाँधे रखेगी ।


🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
अधूरे ख्वाबों को अश्को से बहने दो
मेरे दिल के अरमान दिल में रहने दो।
उनके दामन पर दाग न लग जाये ,
मुझे हर्फ दर हर्फ झूठ कहने दो।
भीड़ में होगे बहुत मेरे जैसे ,
मुझको बस मैं ही मैं रहने दो।
आँख लगती नहीं जिनकी यादों में,
उनकी यादों को आबाद रहने दो।
साथ चलता रहा अजनबी की तरह,
अजनबी था ,अजनबी रहने दो।
#सौजन्यH2SO4एक....

Thursday, February 22, 2018

S H Raza : A Life in Art

Raza : A Life in Art -Book (Free Pdf)
https://issuu.com/artalivegallery/docs/raza_book
 


सैयद हैदर रज़ा उर्फ़ एस.एच. रज़ा (जन्म 22 फ़रवरी 1922- 23 July 2016)
जो सैयद हैदर रजा के काम से नावाकिफ हैं उनके लिए डेढ़ साल पहले रजा साहब का जाना एमएफ हुसैन की तरह ही हिंदुस्तानी चित्रकारी के एक बेहद अहम और मुख्तलिफ हस्ताक्षर का विदा लेना कहलाएगा. लेकिन जो उनके काम में गहरी दिलचस्पी रखते आए हैं वे जानते होंगे कि ‘जो दिखता है वही समझ आता है’ के प्रिज्म से ही पेंटर और उसकी अभिव्यक्तियों को समझने वाले हमारे समाज में रजा ने अपनी एब्सट्रेक्ट आर्ट के जरिए बिंदु, त्रिकोण, पंचतत्व और पुरुष-प्रकृति जैसे हिंदुस्तानी दर्शन को न सिर्फ नयी-अनोखी अभिव्यक्ति दी थी बल्कि हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट को भी अपने नाम के एक पुरोधा से नवाजा था.
मध्य प्रदेश के एक छोटे-से जिले मंडला से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले एसएच रजा अपनी जवानी के दिनों में ही फ्रांस जाकर बस गए, और उनसे मेरी वह यादगार मुलाकात तब की बात है जब 60 साल बाद वापस हिंदुस्तान आकर बसने का फैसला करने के बाद वे दिल्ली के सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया के एक दो-मंजिला फ्लैट में अकेले रहने लगे थे. अपनी तस्वीरों के साये और कुछ सहायकों के सहारे, क्योंकि दिल्ली में यार-दोस्तों का सहारा तो था लेकिन पत्नी का साथ न था.
उनकी पत्नी जेनिन एक फ्रेंच चित्रकार थीं जिनके निधन के बाद ही रजा फ्रांस को अलविदा कहकर भारत आए और उस दिन भी यह बताते हुए शून्य में खो गए कि कैसे वे और जेनिन जवानी के दिनों में फ्रांस में एक प्रोफेसर के स्टूडियो में साथ ही पेंटिंग सीखा करते थे और पांच-छह साल तक जेनिन से दूर रहने की कोशिशों के बाद आखिरकार दोनों ने शादी कर ली थी. रजा-जेनिन का प्रेम किस्से-कहानियों से वंचित एक कहानी है – उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के कई अनसुने किस्सों की तरह, क्योंकि रजा जितना खुलकर अपनी पेंटिंग्स पर बात किया करते थे उतना ही कम निजी जिंदगी पर - लेकिन आग्रह करके पूछने पर उन्होंने मुस्कुराकर जेनिन के बारे में इतना जरूर कहा था, ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सुहानो जाए, एक लकीर काजल की लागे है सो लागे है’.
A young Raza (centre) is seen here with two other members of his Progressive Artists Group, F.N. Souza (far left) and Akbar Padamsee


Modernist painter Syed Haider Raza with wife and French artist Janine Mongillat.
https://www.amazon.in/s/ref=nb_sb_noss?url=search-alias%3Daps&field-keywords=sayed+haider+raza

यूवा सैयद हैदर रज़ा 
Slow, and steady: In Mumbai, a young Raza contemplates his future. Courtesy La Terre catalogue




From left to right: Sayed Haider Raza, Liliane Vincy and a collector circa 1959, Archives Galerie Lara Vincy, 

https://en.wikipedia.org/wiki/S._H._Raza

Newspaper clipping featuring Madame Lara Vincy and her daughter, Liliane with gallery artists including Sayed Haider Raza (at far right)


SH Raza was awarded the Padma Shri in 1981, Padma Bhushan in 2007 and Padma Vibhushan in 2013.

उस वक्त उनकी उम्र 89 थी और साल 2011 था. एक इंटरव्यू के सिलसिले में हुई उस मुलाकात के वक्त उनकी सेहत बेहद नासाज थी और बेहद धीमे-धीमे बोलने के अलावा वे सहारे से ही चल-बैठ पाते थे. लेकिन चित्रकारी को लेकर और खुद को उसके बहाने अभिव्यक्त करने को लेकर उनका उत्साह तब भी चरम पर था. सफेद रंग से पुती दीवारों वाले कमरे में कुछ दिनों पहले ही उनके द्वारा पूरा किया एक विशाल बिंदु सजा था और वे उसके व बिंदु पीताम्बर के साथ ऐसे उत्साह में तस्वीरें खिंचवा रहे थे जैसे कोई नौजवान चित्रकार पहली दफा मनमाफिक पेंटिंग बन जाने पर उत्साही हुआ जा रहा हो. हर तरफ रंग और ब्रश बिखरे हुए थे और उनके बनाए चित्र टिके हुए थे. लेकिन सिर्फ दीवारों पर फ्रेम के अंदर नहीं, जमीन और दीवार की मिलीजुली टेक लेकर ताजे रंगों की खुशबू बिखेरते पिछले ही दिनों-महीनों में तैयार हुए कुछ पूरे तो कुछ अधूरे चित्र. सनद रहे, यह एक 89 वर्षीय बुजुर्ग और शारीरिक रूप से थक चुके चित्रकार का कमरा था, जिसमें रंगों को रखने के काम आने वाला लकड़ी का स्टूल भी इतना रंग-बिरंगा था कि लगता था जैसे रजा ने मस्ती के किन्हीं अनमोल क्षणों में उसे जिंदगी की सबसे चटख रंगीनियत का तोहफा दे दिया हो.

 2013 में बिहार सरकार ने सम्मानित किया सैयद हैदर रजा व बिरजू महाराज को

https://www.youtube.com/watch?v=CJxu4cSHtAQ



(14 जुलाई, 2015 को दूरदर्शी चित्रकार सैयद हैदर रजा को फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘‘द लीजन ऑफ द ऑनर’’ (The distinction of Commandeur de la legion d’ Honner) प्रदत्त किया गया।
इस अवसर पर ‘Un Itineraire’ नामक रजा हैदर की आत्मकथा का विमोचन भी राजदूत रिचियर द्वारा किया गया।
समारोह में प्रसिद्ध कवि, निबंधकार, सांस्कृति और कलाव्यवस्थापक अशोक वाजपेयी की कल्पना पर आधारित एक लघु फिल्म प्रस्तुत की गयी जिसमें हैदर रजा के कार्यों का वर्णन था।
इस समारोह में हैदर रजा के पांच चित्र (Painting) भी प्रदर्शित की गयी।
उल्लेखनीय है कि देश को आजादी मिलने के पश्चात भारतीय कला को यूरोपीय यथार्थवाद के शिंकजे से स्वतंत्र करने और उसकी अस्मिता की खोज के लिए हैदर रजा ने फ्रांसिस न्यूटन सूजा और के.एच.आरा के साथ मिलकर वर्ष 1947 में बॉम्बे प्रोगेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप का गठन किया।
जून, 2010 में क्रिस्टी द्वारा इनकी ‘सौराष्ट्र’ नामक पेंटिंग को लगभग साढ़े सोलह करोड़ रुपये में नीलाम किया गया था।
इन्हें वर्ष 1981 पद्म श्री और ललित कला अकादमी की रत्न सदस्यता से विभूषित किया गया।
वर्ष 2007 में पद्मभूषण एवं वर्ष 2013 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से इन्हें विभूषित किया गया।
‘द लीजन ऑफ ऑनर’ (The Legion of Honour) फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस सम्मान का प्रारंभ वर्ष 1802 में नेपोलियन बोनापार्ट ने किया था।
यह पुरस्कार फ्रांस की उत्कृष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
इसी वर्ष अप्रैल में इस सम्मान से पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा सम्मानित किए गये थे।)
यह उन दिनों की भी बात है जब उनकी 1983 में बनी सात फीट लंबी पेंटिंग ‘सौराष्ट्र’ को क्रिस्टी नीलामघर में 16 करोड़ से ज्यादा में खरीदा गया था, 2010 में, और हर तरफ एक भारतीय चित्रकार के महंगे-मूल्यवान चित्रकार होने के चर्चे हो रहे थे. लेकिन रजा (जिनकी 1973 में बनी एक दूसरी पेंटिंग साल 2014 में 18 करोड़ से ज्यादा में बिकी) इस उपलब्धि से ज्यादा अभिभूत नहीं थे. बिना गुस्से का इजहार किए उन्होंने कहा था, ‘बेकार की बातों को लोग ज्यादा वक्त देते हैं. कोई चित्रकार के काम की बात नहीं करता. वह पेंटिंग सौराष्ट्र को देखने का मेरा नजरिया था जिसमें मैंने राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश के रंग भरे थे. वो एक अच्छी पेंटिंग है, लेकिन मेरी अब तक की बनाई सबसे अच्छी पेंटिंग नहीं. दूसरे, लोगों को यह भी समझना चाहिए कि जो पेंटिंग मैं अपने स्टूडियो में बेचता हूं वो करोड़ों में नहीं बिकती. कुछ हजार या लाख में बिकती है और लंदन या न्यूयॉर्क के अंतर्राष्ट्रीय नीलामघरों में करोड़ों में बिकने वाले मेरे ही चित्रों से मुझे करोड़ों नहीं मिलते!’

 Raza : A Life in Art (Free PDF)
https://issuu.com/artalivegallery/docs/raza_book

रजा और उनका सबसे मशहूर और पसंद किया काम बिंदु आधारित रहा है. दोनों एक-दूसरे के उसी तरह पर्याय रहे हैं जैसे राजा रवि वर्मा के लिए उनके देवी-देवताओं वाले चित्र. लेकिन एक बड़े से कैनवास पर अनेकों रंगबिरंगी गोलाकार धारियों के बीच बने काले शून्य का क्या अर्थ है, यह आम आदमी के लिए समझना आसान नहीं होता और इसीलिए उस दिन भी हमने उनके चित्रों को समझने के लिए उनकी ही मदद ली थी. आखिर क्या है बिंदु? रजा के शब्दों में, ‘बिंदु एक केंद्र है जिसके ऊपर मानसिक शक्तियों को केंद्रित किया जाता है. बिंदु से ही टाइम निकलता है और स्पेस भी. पंचतत्व निकलते हैं और अलग-अलग रंग भी. साथ ही भटकाव से बचने के लिए बिंदु के माध्यम से मन को एक ही दिशा में केंद्रित करके ईश्वर और पवित्र विचार की तरफ जाया जा सकता है. 1970 के दौर में जब मैं बहुत बेचैन था, तब बिंदु के करीब आया. अजंता-एलोरा, बनारस, गुजरात, राजस्थान घूमा और इसकी खोज मैंने स्वयं की. यह मेरी खुद की यात्रा थी और उस दौरान मुझे आश्चर्य भी हुआ कि बिंदु, पंचतत्व और पुरुष प्रकृति जैसे अद्धुत विचारों को अभी तक किसी ने चित्रों में क्यों नहीं उतारा.’



रजा के चित्रों में इसी तरह भारतीय दर्शन की झलक दिखाने के लिए त्रिकोण भी आया जो स्त्री और पुरुष को परिभाषित करता है. बकौल रजा, ‘मेरे चित्रों में अकसर दो त्रिभुज एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं जो कि स्त्री और पुरुष को दर्शाते हैं. पचास स्त्रियों और पुरुषों को प्रेम करते हुए दिखाने के बजाय मैं एब्सट्रेक्ट जियोमैट्री के माध्यम से उन्हें त्रिभुज के तौर पर दर्शाता हूं.’ यह पूछने पर कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में हिंदुस्तान के बंटवारे का दर्द बयां करतीं ‘सिटीस्केप’ (1946) और ‘बारामूला इन रूइन्स’ (1948) जैसी कई यथार्थवादी पेंटिंग बनाईं लेकिन अब क्यों नहीं, का जवाब भी रजा ने बड़े ही रोचक अंदाज में दिया था, ‘अब जो व्यक्तिगत पीड़ाएं हैं उनको मैं अपनी कला में ला ही नहीं सकता. सभी मनुष्यों के सामूहिक विचार और पीड़ा को अपनी पेंटिंग में कैद कर सकता हूं लेकिन किसी एक के विचार या पीड़ा को कैनवास पर उभारना अब मेरे लिए मुश्किल है.’





असली और नकली पेंटिंग के बीच फर्क करने में नाकाम रहने वाले कला-प्रेमियों के बारे में भी रजा ने एक दिलचस्प वाकया साझा किया था. ‘भारत लौटने के बाद मैं एक बार अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी में गया. 24 चित्र थे मेरे वहां, और सभी नकली! मेरे बताने से पहले न तो गैलरी मालिक को इसका पता था और न ही वहां आकर तस्वीरों को निहार रहे कला-प्रेमियों को इसकी जरा सी भी भनक.’
‘मेरे चित्रों में अकसर दो त्रिभुज एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं जो कि स्त्री और पुरुष को दर्शाते हैं. पचास स्त्रियों और पुरुषों को प्रेम करते हुए दिखाने के बजाय मैं एब्सट्रेक्ट जियोमैट्री के माध्यम से उन्हें त्रिभुज के तौर पर दर्शाता हूं’


(सैयद हैदर रज़ा की पेंटिंग सौराष्ट्र 2.4 million pounds (तकरीबन 22 करोड़ रूपए)
Raza sets record for Indian modern art in London
A painting by leading Indian artist Syed Haider Raza sold for almost 2.4 million pounds in London on Thursday, setting a record for a modern Indian work. “Saurashtra”, dated 1983, was estimated to fetch between 1.3 and 1.8 million pounds, but finally sold for 2,393,250 pounds including buyers’ premium. The painting belonged to a key
(newsJun 11, 2010 | By Anakin)


रजा ने इस व्यक्तिगत सवाल का जवाब भी बहुत खूब दिया कि कई दूसरे प्रसिद्ध हिंदुस्तानी चित्रकारों की तरह (एमएफ हुसैन, राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल), उन्होंने पेंटिंग की उन विधाओं को क्यों नहीं अपनाया जिसमें बनी आकृतियों के सहारे आम जनता के लिए चित्रों को समझना और उनसे तुरंत जुड़ाव महसूस करना आसान होता है. ‘हम भारतीयों का जो देखने का तरीका होता है, वो सिर्फ आंखों से देखना नहीं होता. आंखों से देखना, हृदय में उतारना और बुद्धि का उपयोग करके उसे कैनवास पर उकेरना. जब हृदय और बुद्धि का संगम होता है न, तब वह रियलिज्म से हटकर कुछ और हो जाता है. आजादी के बाद हमारे यहां अंग्रेजों की वजह से चित्रकारों ने यूरोपियन रियलिज्म को जरूरत से ज्यादा हाथों-हाथ लिया था. वो विधा कहती है कि जो कुछ भी आंखों से दिख सके उसे ही कैनवास पर उतारने का नाम कला है. लेकिन भारतीय चित्रकार का ध्येय यह नहीं है. उसका लक्ष्य तो यह है कि आंखों से देखो, मन से सोचो और दोनों को मिलाकर जो बाहर निकले उसे चित्र में सामने लाओ. आप अजंता-एलोरा देखिए, आदिवासी चित्रकला देखिए, गांवों की कला देखिए, उसमें यूरोपियन रियलिज्म नहीं होता. और इसी वजह से वह इतनी खूबसूरत होती है.’
The progressive artist (Front L to R) Francis Newton Suza,K H Ara, A H Gade,
Back Row(L to R) M F Husain, S K Bakre, S H Raza,

यकीनन, इसीलिए सैयद हैदर रजा के चित्र भी समय के अंधड़ में कभी धूल नहीं खाने वाले. और जब तक हम यह जानने-समझने की कोशिश करते रहेंगे कि एक बेहद लंबे करियर में रजा ने क्या-क्या उकेरा, और उनके चित्रों में क्या-कितना भारतीय था और क्यों था, तब तक यह भारतीय चित्रकार अपने चित्रों द्वारा हमेशा अमर बना रहेगा. आमीन! (मनीषा यादव का यह लेख सत्ग्रह से)

Asian Image Apollo Award.