Thursday, January 25, 2018

युवा लेखक उस्मान खान के नए कहानी संग्रह से एक कहानी


युवा लेखक उस्मान खान का नया कहानी संग्रह जल्द ही बाजार में आने वाला है। नाम है तुमसे किसने पूछा। उस्मान मलेशिया रहते हैं। मूलरूप से भारतीय हैं। इससे पहले उनका उपन्यास एचटूएसओफोर भी काफी लोकप्रिय रहा था। पढ़िए उनके नए कहानी संग्रह से एक अंशः
ज़िन्दगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं, जब हम इतने हताश और निराश हो जाते हैं कि लगने लगता है मानो सब कुछ टूटकर बिखर गया है। लेकिन जो टूटकर बिखर जाने के बाद फिर से खड़े होते हैं और मंजिल की तऱफ बढ़ते हैं, वही लोग ज़िन्दगी को सही मायनों में जीते हैं। ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर जब आप खुद को बेहद टूटा हुआ सा
महसूस करें, तो याद रखें, एक जापानी परम्परा के अनुसार, जब कोई वस्तु टूट जाती है, तो उसे कई बार सोने से जोड़ा जाता है। इससे टूटी हुई वस्तु की ख़राबी, खूबी में तब्दील हो जाती है, और वस्तु की क़ीमत बढ़ जाती है। ठीक उसी प्रकार कभी-कभी टूटने से ज़िन्दगी औरज्यादा कीमती बन जाती है। टूटकर जुड़ने में इंसान को जो लगन लगती है, वही इंसान को मूल्यवान बनाती है। शुरूआत तो त़करीबन पाँच साल पहले एक अनजानी मुला़कात से हुई थी। तुम मेरी यूनिवर्सिटी में आये थे, और तुमने विश्व महिला दिवस पर महिलाओं के अधिकारों की जमकर वकालत की थी। ‘महिलाएँ हर मामले में पुरुष के बराबर हैं।’ यह बताते हुए तुमने कल्पना चावला, ज्योतिबा फुले, फ़ातिमा शे़ख से लेकर न जाने कितनी महिलाओं के नाम गिना दिए थे। मैं स्टूडेंट थी। तुम्हारी बातों ने मुझ पर जादू जैसा असर किया था। तुम्हारे दिल में महिलाओं को लेकर सम्मान; और जो तुम्हारा
ऩजरिया था, उसने मुझे बहुत प्रभावित किया था, और न जाने कब मैं तुमसे प्यार कर बैठी, पता ही नहीं चला। लेकिन उन सब बातों को अब मैं याद नहीं करना चाहती हूँ। वह सब अब बीत चुका है, जिनको दोहराने का मतलब है खुद के जख्मों को नाखून से कुरेदना। मुझे याद है वह दिसम्बर की सर्दियाँ ही थीं। अचानक तुमने मुझसे
धीरे-धीरे किनारा कर लिया था। उन दिनों मैं बेहद तनहा रहती थी। कई बार इतनी तनहा कि कई-कई दिन गु़जर जाते थे, मेरे पास बात करने तक को कोई नहीं होता था। तब अक्सर मैंजोर-़जोर सेखुद से बातें करने लगती थी, घंटों पुराने ख्यालों में खोई रहती। ज़िन्दगी जैसे बँध सी गई थी। सुबह को भाग-भागकर, दिल्ली मेट्रो के नीले प्लेट़फॉर्म से पीले प्लेट़फॉर्म को साँप-सीढ़ी के जैसे बदलते हुए ऑफिस, और शाम को फिर वही कंधे से कंधा ठेलते ऑफिस से घर, उल्टा-सीधा खाना खाना, और देर रात जागते हुए सो जाना… बस यही ज़िन्दगी के कुछ हिस्से थे जिन्हें मैं जिए जा रही थी। कहना मुश्किल है कि मैं ज़िन्दगी जी रही थी या ज़िन्दगी गु़जार रही थी। इतना तनहा पहले कभी मैंने खुद को महसूस नहीं किया था। अचानक से सब कुछ इतना दूर चला जायेगा मैंने सोचा न था। तुम मेरे पास नहीं थे, लेकिन तुम्हारा एहसास आज भी हर पल मेरे पास है। ऐसी ही एक रात जब मैं, मेट्रो से निकलकर सुनसान बस स्टैंड पर खड़ी किसी ऑटो के आने का का इंत़जार कर रही थी, तो अचानक वह मुझे मिल गया। मैं उसको कनखियों से देखने लगी। एक दो बार के बाद उसको एहसास हो गया कि मैं उसको देख रही हूँ। उस सुनसान बस स्टैंड पर मेरे और उसके अलावा और कोई नहीं था। स्ट्रीट लाइट की रौशनी बेहद मद्धम थी। वह जीन्स टी शर्ट पहने था, जिस पर उसने एक खुला हुआ हुड वाला स्वेट शर्ट पहना हुआ था। कंधे पर एक छोटा सा बैग था, और सर पर ऊनी कैप। शायद उसको भी मेरी तरह किसी ऑटो के आने का इंत़जार था। मेरा दिल चाह रहा था कि मैं उससे बात करूँ, लेकिन न जाने क्यों हिम्मत नहीं जुटा पाई।
‘‘आप नेहा हो?’’ मैंने उससे इस तरह अचानक सवाल की उम्मीद नहीं की थी, वह भी सीधा मेरे नाम के साथ। लेकिन ऐसा होना कोई ताज्जुब की बात नहीं है। अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी जानने वाले से अचानक कहीं न कहीं मिल जाते हैं। मैंने उसके चेहरे को देखते हुए धीरे से ‘जी’ बोला, और अपने दिमाग़ परजोर देने लगी कि वह कौन है? मुझे
कैसे जानता है? ‘‘आप रो़ज यहाँ से निकलकर साउथ एक्सटेंशन तक जाती हो, फिर देर रात तक जागती हो, और भाग-भागकर सुबह फिर ऑफिस आती हो; दिन भर सब पेगुस्सा करती हो, और यहाँ तक कि कैंटीन के खाने तक
पर गुस्सा निकालती हो; इनसे जो बच जाता है वह भड़ास फेसबुक पर लिखकर निकालती हो।’’
‘‘आप… आप कौन हो? इतना कुछ कैसे जानते हो…’’ वह अब बिलकुल मेरे पास खड़ा था। मैं उसको आँखे फाड़-फाड़कर देख रही थी, और जानने की कोशिश कर रही थी कि आ़िखर वह कौन है? मैं अपने दिमा़ग परजोर दे रही थी, कि कहीं यह मेरा कोई स्टूडेंट तो नहीं है, जिससे मैं चार साल पहले ही पीछा छुड़ा चुकी थी… या शायद मेरे साथ किसी ऑफिस में जॉब करता था। एक पल में ही मैंने कई चेहरे खँगाल डाले, लेकिन उसका चेहरा उनमें ऩजर नहीं आया। तब आ़िखरी उम्मीद के साथ दिमाग़ परजोर देते हुए मैंने मान लिया किजरूर कोई फेसबुक प्रड है, जो मेरी पोस्ट पढ़ता है। मैंने फिर वही सवाल दोहराया ‘‘आप कौन हो?’’ ‘‘छोड़ो न… मुझे कोई कहानी सुनाओ न।’’ यह बेहद अजीब सी फरमाइश थी, वह भी एक अनजान लड़के के द्वारा, जिसको मैं दिमाग़ पर का़फीजोर देने के बाद भी नहीं पहचान पाई थी, और उसकी पहचान को खारि़ज कर चुकी थी, कि मैं इसको पहले से जानती हूँ। ‘‘कहानी? इस व़क्त? और आप कौन हो… आपका नाम?’’ न जाने क्यों मैं एक अजीब सी कै़िफयत खुद में महसूस कर रही थी। मैंने फिर वही सवाल दोहराया। ‘‘नेहा, वह सब छोड़ो… अभी बहुत व़क्त बा़की है; कोई कहानी सुनाओ, लेकिन पुरानी या सुनी सुनाई नहीं।’’ ‘‘तो फिर…?’’ मुझे अपने सीने में एक जलन सी महसूस हो रही थी। दिल कर रहा था कि इस जलन को आँसुओं से धो दूँ। यह सब बेहद अजीब था। दिल कर रहा था कि मैं फूट-फूटकर रो दूँ। ‘‘अभी… अभी सुनाओ तुरंत कोई कहानी बनाकर सुनाओ।’’ यह बेहद अविश्वसनीय सा था। वह अगले ही पल किसी बच्चे के जैसा ठुनकने लगा। अगर मैं एक पल की और देर करती तो शायद वह रो देता। वह मेरा चेहरा
देख रहा था, और मेरे लबों के खुलने का इंत़जार कर रहा था। ‘‘ठीक है बाबा सुनो!’’ कहकर मैंने बोलना शुरू किया। वह मेरा
चेहरा देख रहा था। ‘‘उन दिनों मैं दसवीं क्लास में पढ़ती थी। मेरे पड़ोस में सड़क के पारएक लड़का रहता था, जो कि मुझसे का़फी छोटा था। वह अनाथ था। उसके माँ-बाप दोनों ही मर चुके थे, और दूर के रिश्तेदारों के लिए वह एक बोझ से ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए किसी ने उसकी कोई सुध नहीं ली। वह सड़क के किनारे बनी दुकानों के शेड के नीचे रहता था। रात को वहीं सोता था, और दिन में लोगों के छोटे-मोटे काम कर देता था, जिससे कि
लोग उसको खाने को दे देते… कोई उसको चाय पिला देता था, तो कोई उसको पुराने कपड़े पहनने को दे देता।
क्योंकि उसकी परवरिश सड़क पर हो रही थी, जिसकी वजह से गालियाँ देना, चोरी करना, लड़ाई-झगड़ा करना, कंचे खेलना, धीरे-धीरे उसकी आदत बनती जा रही थी। इतनी कम उम्र में भी उसके दाँत हर व़क्त गुटखे से बदरंग रहते। वह जब भी किसी के पास जाता, लोग उससे जमकर काम करवाते, और बदले में घर का बासी खाना दे देते, या फिर चाय। कस्मत अच्छी रही तो कभी-कभार कोई मिठाई भी मिल जाती। कई बार वह सीधा खाना या चाय न लेकर पैसे माँगता। तब कोई उसके हाथ पर
एक-दो रुपए का सिक्का रख देता। उसका असली नाम क्या था, मैं आज भी नहीं जानती… बस सब उसको किद्दू कहते थे। अनाथ होने के बावजूद वह खाना खाने में बेहद नखरे करता था। ऐसा नहीं था कि आप उसको जो दोगे खा लेगा; जो
उसको पसंद होता था वही खाता था, जो नहीं पसंद आता, उसको अपने
कुत्ते को खिला देता। इन नखरों के कारण वहाँ उसको लोग दूर दूर तक ‘‘किद्दू क्या खाएगा?’’ बोलकर चिढ़ाते। वह भर-भर कर माँ-बहन की गालियाँ देता। आस-पास के सभी दुकान वाले, ठेले वाले, पटरी वाले, बुक्का फाड़करजोर-़जोर से हँसते। जितना वह गालियाँ देता, लोग उतना ही उसको छेड़ते। उन छेड़ने वालों में मैं भी शुमार थी। जब भी किद्दू दिखता, बा़की लोगो के जैसे ही मैं भी उसको ‘‘किद्दू क्या खायेगा?’’ बोलकर छेड़ती, और ते़जी से अपने घर के दरवा़जे की तरफ भाग जाती। लेकिन न जाने क्यों, किद्दू मुझको गालियाँ नहीं देता। वह ‘‘अले जाओ याल।’’ बोलकर निकल जाता। उसकी ज़िन्दगी सड़क पर ठोकर खाते पत्थर से ज्यादा कुछ नहीं थी, लेकिन फिर भी वह मेरे लड़की होने का मान रखता। लोग उसको अठन्नी-चवन्नी देने से पहले, जमकर परेशान करते, फिर कोई चाट के ठेले वाले से कहता ‘‘अरे काले,जरा किद्दू को मेरी तरफ से आलू खिला देना, अठन्नी मुझसे ले लियो।’’ इतना होने के बाद भी किद्दू, चटपटे आलू खाने के लालच में तुरन्त सब भूल जाता, और ठेले की तऱफ खुशी-़खुशी दौड़ जाता। उसको छेड़ने में जो शब्द वह इस्तेमाल करते, वह बेहद तकली़फदेह होते थे, लेकिन किद्दू अभी इतना बड़ा नहीं था कि उन शब्दों को समझ पाता… वह तो बस, जो जैसा कहता, नाक सुड़कते हुए उसको पलटकर वही गाली दे देता। कोई कहता ‘वह बड़े दाँत वाली खप्पड़ रंडी तेरी अम्मा है, वही तुझे नाले के पास डाल गई थी।’ तो कोई कहता ‘किद्दू गुड़वंती है, दो रुपये के बदले इसने खेत में बंगाली के लौंडे को दी थी।’ किद्दू उनकी बात का वही
मुँहतोड़ जवाब दोहरा देता कि खप्पड़ रंडी की तू औलाद, मैं नहीं। तूने बंगाली के लौंडे से मरवाई है, मैंने नहीं, मैं गुड़ नहीं हूँ।
दिन ऐसे ही बीत रहे थे। सब किद्दू को चिढ़ाते, छेड़ते, या फिर किद्दू केजरिये किसी बुड्ढे-ठुड्डे को छेड़ते। जैसा कि मैंने बताया, उन छेड़ने वाले लोगों की जमात में मैं भी शामिल थी। जब भी किद्दू को देखती, तुरंतजोर से, कभी छत के छज्जे से तो कभी दरवा़जे से ‘किद्दू क्या खायेगा?’ आवा़ज लगा देती। किद्दू ‘‘अले जाओ याल।’’ बोलता हुआ
हाथ झटकता हुआ वहाँ से निकल जाता। एक शाम बहुत ते़ज बारिश हुई। मैं और मेरे चचेरे भाई-बहन, मोहल्ले के बाकी बच्चों के साथ इकट्ठा खड़े थे। हम लोग भरे हुए गंदे पानी में अठखेलियाँ कर रहे थे। तभी एक साथी लड़के ने फुसफुसाते हुए कहा ‘‘देख-देख, किद्दू आ रहा है।’’ सबने उधर देखा। एक हाथ में खाने की पॉलीथीन और एक हाथ में हवाई चप्पलें थामे
किद्दू, भरे हुए गंदे पानी में छपड़-छपड़ करता हुआ बढ़ता जा रहा था। हम सबने एक साथ आवा़ज लगाई ‘‘किद्दू क्या खायेगा…?’’ ‘‘अले याल… हम मर भी जायेंगे तब भी तुम लोग मेरी कबर पर आकर यही कहना।’’ कहता हुआ किद्दू बढ़ गया। हम सबजोर-़जोर से बुक्का फाड़कर हँस दिए।
http://www.mediamirror.in/2566

Boor review -H2SO4 Ek Prem Kahani


Pratibha Agrahari-Indour

उस्मान भैय्या कि किताब बहुत अच्छी है. इतनी प्यार भरी कहानी शायद ही आजतक मैंने पढ़ी हो. किसी लड़की के चेहरे को जला देने के बाद कि तकलीफ को इतनी गहराई से लिखा है कि शब्द नहीं है मेरे पास. आपकी किताब बहुत अच्छी है. फोटो भेज रही हूँ छाप देना-thanks प्रांजलि

Pranjali-Rampur

मेरे पड़ोसी और अजीज दोस्त उस्मान खान जो कि पेशे से आर्टिस्ट व लेखक है। छात्र जीवन से सांस्कृतिक, समाजिक व साहित्यिक गतिविधियों में सक्रीय रहे है। 2006 में श्रेष्ठ कहानी और संकल्पना के लिये "24 FPS" का सम्मान मिला। एसिड अटैक की घटनाओं पर आधारित पहली पुस्तक "H2SO4- एक प्रेम कहानी " लिखी। जो पाठको के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। उसके बाद दूसरी पुस्तक " तुमसे किसने पूछा" लिखी। इस पुस्तक को मैंने पढ़ा बेहद ही रोचक लगी। यह कहानियाँ हर इंसान से जुड़ी हुई है। जो हमारे साथ होता है, जो हम देखते है रोजमर्रा की जिंदगी में पर हम अनदेखा कर देते है। किसी की सोच, किसी का डर, किसी का प्यार, किसी का बचपन कुछ भी हो सकता है। यह सब जीवंत किया है उस्मान ने अपने सब्दों से कोरे पन्नों पर। आखिर में यही कहूंगा कि एक बार जरूर पढ़ें।
Prashant Gautam



Wednesday, January 24, 2018

Readers Review:-'H2SO4 EK PREM KAHANI'

 

इति श्री 'H2SO4- एक प्रेम कहानी' समाप्तम.... एक ऐसी प्रेम कहानी जिसमे प्रेमी को कई अग्निपरीक्षाओ से गुजरना पड़ता है..जिनमे अपने प्रेम को सिद्ध करते-करते वह सब कुछ खो देता है जिसे वह अपना कह सकता था... प्रेमिका भी किसी के एहसानो की वजह से प्रेम स्वीकारने से कतराती रहती है.... फिर कुछ ऐसा घटता है कि प्रेमिका के जीवन मे हर दृष्टिकोण से अंधेरा छा जाता है.... पर फिर भी दोनो के जीवन में गहरे अंधकार के बाद एक हसीन सुबह होती है...अगर एक वाक्य में कहु तो "दुख और तकलीफों की धूप में तपी सदगीभरी,विशुद्ध और सफल प्रेम कहानी....5सितारा प्रेम कहानी"

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लेखक :-उस्मान खान जी की पुस्तक H2SO4 एक प्रेम कहानी और तुमसे किसने पूछा....उम्दा पुस्तक है।उस्मान खान अच्छे लेखक तो है ही साथ ही बहुत अच्छे सलाहकार भी है।Congratulations
:-Natasha Singh


Tumse kisne Puchha:- World Book Fair 2018

Cover page- 'Tumse Kisne Puchha'

Cover Girl Ashima Kumari and Publisher Venus Kesri.-World Book Fair 2018

Cover With Cover Girl Ashima Kumari -World Book Fair 2018


Media journalist Ashima Kumari and Research Scholar Shrimant Jainendra -JNU-World Book Fair 2018

Media journalist Ashima Kumari 



Readers Review:- Tumse kisne Puchha.


Readers Review:- Tumse kisne Puchha.
'तुमसे किसने पूछा.'
Gagandra Kumar-Mumbai

Shariq Khan-Delhi


Rahul Rai-Kanpur
Dr. R. Tiwari-Hoshangabad

H2SO4 Ek Prem Kahani Kindle edition Kindle edition

'H2SO4 एक प्रेम कहानी' का Kindle edition Amazon पर सिर्फ 49 ₹ में उपलब्ध है. https://www.amazon.in/dp/B0796TWDDB

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