Raza : A Life in Art -Book (Free Pdf)
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सैयद हैदर रज़ा उर्फ़ एस.एच. रज़ा (जन्म 22 फ़रवरी 1922- 23 July 2016)
जो सैयद हैदर रजा के काम से नावाकिफ हैं उनके लिए डेढ़ साल पहले रजा साहब का जाना एमएफ हुसैन की तरह ही हिंदुस्तानी चित्रकारी के एक बेहद अहम और मुख्तलिफ हस्ताक्षर का विदा लेना कहलाएगा. लेकिन जो उनके काम में गहरी दिलचस्पी रखते आए हैं वे जानते होंगे कि ‘जो दिखता है वही समझ आता है’ के प्रिज्म से ही पेंटर और उसकी अभिव्यक्तियों को समझने वाले हमारे समाज में रजा ने अपनी एब्सट्रेक्ट आर्ट के जरिए बिंदु, त्रिकोण, पंचतत्व और पुरुष-प्रकृति जैसे हिंदुस्तानी दर्शन को न सिर्फ नयी-अनोखी अभिव्यक्ति दी थी बल्कि हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट को भी अपने नाम के एक पुरोधा से नवाजा था.
जो सैयद हैदर रजा के काम से नावाकिफ हैं उनके लिए डेढ़ साल पहले रजा साहब का जाना एमएफ हुसैन की तरह ही हिंदुस्तानी चित्रकारी के एक बेहद अहम और मुख्तलिफ हस्ताक्षर का विदा लेना कहलाएगा. लेकिन जो उनके काम में गहरी दिलचस्पी रखते आए हैं वे जानते होंगे कि ‘जो दिखता है वही समझ आता है’ के प्रिज्म से ही पेंटर और उसकी अभिव्यक्तियों को समझने वाले हमारे समाज में रजा ने अपनी एब्सट्रेक्ट आर्ट के जरिए बिंदु, त्रिकोण, पंचतत्व और पुरुष-प्रकृति जैसे हिंदुस्तानी दर्शन को न सिर्फ नयी-अनोखी अभिव्यक्ति दी थी बल्कि हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट को भी अपने नाम के एक पुरोधा से नवाजा था.
मध्य प्रदेश के एक छोटे-से जिले मंडला से अपने जीवन की शुरुआत करने वाले एसएच रजा अपनी जवानी के दिनों में ही फ्रांस जाकर बस गए, और उनसे मेरी वह यादगार मुलाकात तब की बात है जब 60 साल बाद वापस हिंदुस्तान आकर बसने का फैसला करने के बाद वे दिल्ली के सफदरजंग डेवलपमेंट एरिया के एक दो-मंजिला फ्लैट में अकेले रहने लगे थे. अपनी तस्वीरों के साये और कुछ सहायकों के सहारे, क्योंकि दिल्ली में यार-दोस्तों का सहारा तो था लेकिन पत्नी का साथ न था.
उनकी पत्नी जेनिन एक फ्रेंच चित्रकार थीं जिनके निधन के बाद ही रजा फ्रांस को अलविदा कहकर भारत आए और उस दिन भी यह बताते हुए शून्य में खो गए कि कैसे वे और जेनिन जवानी के दिनों में फ्रांस में एक प्रोफेसर के स्टूडियो में साथ ही पेंटिंग सीखा करते थे और पांच-छह साल तक जेनिन से दूर रहने की कोशिशों के बाद आखिरकार दोनों ने शादी कर ली थी. रजा-जेनिन का प्रेम किस्से-कहानियों से वंचित एक कहानी है – उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के कई अनसुने किस्सों की तरह, क्योंकि रजा जितना खुलकर अपनी पेंटिंग्स पर बात किया करते थे उतना ही कम निजी जिंदगी पर - लेकिन आग्रह करके पूछने पर उन्होंने मुस्कुराकर जेनिन के बारे में इतना जरूर कहा था, ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सुहानो जाए, एक लकीर काजल की लागे है सो लागे है’.
उनकी पत्नी जेनिन एक फ्रेंच चित्रकार थीं जिनके निधन के बाद ही रजा फ्रांस को अलविदा कहकर भारत आए और उस दिन भी यह बताते हुए शून्य में खो गए कि कैसे वे और जेनिन जवानी के दिनों में फ्रांस में एक प्रोफेसर के स्टूडियो में साथ ही पेंटिंग सीखा करते थे और पांच-छह साल तक जेनिन से दूर रहने की कोशिशों के बाद आखिरकार दोनों ने शादी कर ली थी. रजा-जेनिन का प्रेम किस्से-कहानियों से वंचित एक कहानी है – उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के कई अनसुने किस्सों की तरह, क्योंकि रजा जितना खुलकर अपनी पेंटिंग्स पर बात किया करते थे उतना ही कम निजी जिंदगी पर - लेकिन आग्रह करके पूछने पर उन्होंने मुस्कुराकर जेनिन के बारे में इतना जरूर कहा था, ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सुहानो जाए, एक लकीर काजल की लागे है सो लागे है’.
A young Raza (centre) is seen here with two other members of his Progressive Artists Group, F.N. Souza (far left) and Akbar Padamsee
Modernist painter Syed Haider Raza with wife and French artist Janine Mongillat.
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यूवा सैयद हैदर रज़ा
Slow, and steady: In Mumbai, a young Raza contemplates his future. Courtesy La Terre catalogue
Slow, and steady: In Mumbai, a young Raza contemplates his future. Courtesy La Terre catalogue
From left to right: Sayed Haider Raza, Liliane Vincy and a collector circa 1959, Archives Galerie Lara Vincy,
https://en.wikipedia.org/ wiki/S._H._Raza
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Newspaper clipping featuring Madame Lara Vincy and her daughter, Liliane with gallery artists including Sayed Haider Raza (at far right)
SH Raza was awarded the Padma Shri in 1981, Padma Bhushan in 2007 and Padma Vibhushan in 2013.
Young Raza in his studio in Paris
http://www.sothebys.com/ en/news-video/blogs/ specials/ asia-week-catalogue-essays/ 2016/02/ sayed-haider-raza-galerie-l ara-vincy-n09479.html
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उस वक्त उनकी उम्र 89 थी और साल 2011 था. एक इंटरव्यू के सिलसिले में हुई उस मुलाकात के वक्त उनकी सेहत बेहद नासाज थी और बेहद धीमे-धीमे बोलने के अलावा वे सहारे से ही चल-बैठ पाते थे. लेकिन चित्रकारी को लेकर और खुद को उसके बहाने अभिव्यक्त करने को लेकर उनका उत्साह तब भी चरम पर था. सफेद रंग से पुती दीवारों वाले कमरे में कुछ दिनों पहले ही उनके द्वारा पूरा किया एक विशाल बिंदु सजा था और वे उसके व बिंदु पीताम्बर के साथ ऐसे उत्साह में तस्वीरें खिंचवा रहे थे जैसे कोई नौजवान चित्रकार पहली दफा मनमाफिक पेंटिंग बन जाने पर उत्साही हुआ जा रहा हो. हर तरफ रंग और ब्रश बिखरे हुए थे और उनके बनाए चित्र टिके हुए थे. लेकिन सिर्फ दीवारों पर फ्रेम के अंदर नहीं, जमीन और दीवार की मिलीजुली टेक लेकर ताजे रंगों की खुशबू बिखेरते पिछले ही दिनों-महीनों में तैयार हुए कुछ पूरे तो कुछ अधूरे चित्र. सनद रहे, यह एक 89 वर्षीय बुजुर्ग और शारीरिक रूप से थक चुके चित्रकार का कमरा था, जिसमें रंगों को रखने के काम आने वाला लकड़ी का स्टूल भी इतना रंग-बिरंगा था कि लगता था जैसे रजा ने मस्ती के किन्हीं अनमोल क्षणों में उसे जिंदगी की सबसे चटख रंगीनियत का तोहफा दे दिया हो.
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(14 जुलाई, 2015 को दूरदर्शी चित्रकार सैयद हैदर रजा को फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘‘द लीजन ऑफ द ऑनर’’ (The distinction of Commandeur de la legion d’ Honner) प्रदत्त किया गया।
इस अवसर पर ‘Un Itineraire’ नामक रजा हैदर की आत्मकथा का विमोचन भी राजदूत रिचियर द्वारा किया गया।
समारोह में प्रसिद्ध कवि, निबंधकार, सांस्कृति और कलाव्यवस्थापक अशोक वाजपेयी की कल्पना पर आधारित एक लघु फिल्म प्रस्तुत की गयी जिसमें हैदर रजा के कार्यों का वर्णन था।
इस समारोह में हैदर रजा के पांच चित्र (Painting) भी प्रदर्शित की गयी।
उल्लेखनीय है कि देश को आजादी मिलने के पश्चात भारतीय कला को यूरोपीय यथार्थवाद के शिंकजे से स्वतंत्र करने और उसकी अस्मिता की खोज के लिए हैदर रजा ने फ्रांसिस न्यूटन सूजा और के.एच.आरा के साथ मिलकर वर्ष 1947 में बॉम्बे प्रोगेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप का गठन किया।
जून, 2010 में क्रिस्टी द्वारा इनकी ‘सौराष्ट्र’ नामक पेंटिंग को लगभग साढ़े सोलह करोड़ रुपये में नीलाम किया गया था।
इन्हें वर्ष 1981 पद्म श्री और ललित कला अकादमी की रत्न सदस्यता से विभूषित किया गया।
वर्ष 2007 में पद्मभूषण एवं वर्ष 2013 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से इन्हें विभूषित किया गया।
‘द लीजन ऑफ ऑनर’ (The Legion of Honour) फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस सम्मान का प्रारंभ वर्ष 1802 में नेपोलियन बोनापार्ट ने किया था।
यह पुरस्कार फ्रांस की उत्कृष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
इसी वर्ष अप्रैल में इस सम्मान से पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा सम्मानित किए गये थे।)
इस अवसर पर ‘Un Itineraire’ नामक रजा हैदर की आत्मकथा का विमोचन भी राजदूत रिचियर द्वारा किया गया।
समारोह में प्रसिद्ध कवि, निबंधकार, सांस्कृति और कलाव्यवस्थापक अशोक वाजपेयी की कल्पना पर आधारित एक लघु फिल्म प्रस्तुत की गयी जिसमें हैदर रजा के कार्यों का वर्णन था।
इस समारोह में हैदर रजा के पांच चित्र (Painting) भी प्रदर्शित की गयी।
उल्लेखनीय है कि देश को आजादी मिलने के पश्चात भारतीय कला को यूरोपीय यथार्थवाद के शिंकजे से स्वतंत्र करने और उसकी अस्मिता की खोज के लिए हैदर रजा ने फ्रांसिस न्यूटन सूजा और के.एच.आरा के साथ मिलकर वर्ष 1947 में बॉम्बे प्रोगेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप का गठन किया।
जून, 2010 में क्रिस्टी द्वारा इनकी ‘सौराष्ट्र’ नामक पेंटिंग को लगभग साढ़े सोलह करोड़ रुपये में नीलाम किया गया था।
इन्हें वर्ष 1981 पद्म श्री और ललित कला अकादमी की रत्न सदस्यता से विभूषित किया गया।
वर्ष 2007 में पद्मभूषण एवं वर्ष 2013 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से इन्हें विभूषित किया गया।
‘द लीजन ऑफ ऑनर’ (The Legion of Honour) फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस सम्मान का प्रारंभ वर्ष 1802 में नेपोलियन बोनापार्ट ने किया था।
यह पुरस्कार फ्रांस की उत्कृष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है।
इसी वर्ष अप्रैल में इस सम्मान से पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा सम्मानित किए गये थे।)
यह उन दिनों की भी बात है जब उनकी 1983 में बनी सात फीट लंबी पेंटिंग ‘सौराष्ट्र’ को क्रिस्टी नीलामघर में 16 करोड़ से ज्यादा में खरीदा गया था, 2010 में, और हर तरफ एक भारतीय चित्रकार के महंगे-मूल्यवान चित्रकार होने के चर्चे हो रहे थे. लेकिन रजा (जिनकी 1973 में बनी एक दूसरी पेंटिंग साल 2014 में 18 करोड़ से ज्यादा में बिकी) इस उपलब्धि से ज्यादा अभिभूत नहीं थे. बिना गुस्से का इजहार किए उन्होंने कहा था, ‘बेकार की बातों को लोग ज्यादा वक्त देते हैं. कोई चित्रकार के काम की बात नहीं करता. वह पेंटिंग सौराष्ट्र को देखने का मेरा नजरिया था जिसमें मैंने राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश के रंग भरे थे. वो एक अच्छी पेंटिंग है, लेकिन मेरी अब तक की बनाई सबसे अच्छी पेंटिंग नहीं. दूसरे, लोगों को यह भी समझना चाहिए कि जो पेंटिंग मैं अपने स्टूडियो में बेचता हूं वो करोड़ों में नहीं बिकती. कुछ हजार या लाख में बिकती है और लंदन या न्यूयॉर्क के अंतर्राष्ट्रीय नीलामघरों में करोड़ों में बिकने वाले मेरे ही चित्रों से मुझे करोड़ों नहीं मिलते!’
Raza : A Life in Art (Free PDF)
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रजा और उनका सबसे मशहूर और पसंद किया काम बिंदु आधारित रहा है. दोनों एक-दूसरे के उसी तरह पर्याय रहे हैं जैसे राजा रवि वर्मा के लिए उनके देवी-देवताओं वाले चित्र. लेकिन एक बड़े से कैनवास पर अनेकों रंगबिरंगी गोलाकार धारियों के बीच बने काले शून्य का क्या अर्थ है, यह आम आदमी के लिए समझना आसान नहीं होता और इसीलिए उस दिन भी हमने उनके चित्रों को समझने के लिए उनकी ही मदद ली थी. आखिर क्या है बिंदु? रजा के शब्दों में, ‘बिंदु एक केंद्र है जिसके ऊपर मानसिक शक्तियों को केंद्रित किया जाता है. बिंदु से ही टाइम निकलता है और स्पेस भी. पंचतत्व निकलते हैं और अलग-अलग रंग भी. साथ ही भटकाव से बचने के लिए बिंदु के माध्यम से मन को एक ही दिशा में केंद्रित करके ईश्वर और पवित्र विचार की तरफ जाया जा सकता है. 1970 के दौर में जब मैं बहुत बेचैन था, तब बिंदु के करीब आया. अजंता-एलोरा, बनारस, गुजरात, राजस्थान घूमा और इसकी खोज मैंने स्वयं की. यह मेरी खुद की यात्रा थी और उस दौरान मुझे आश्चर्य भी हुआ कि बिंदु, पंचतत्व और पुरुष प्रकृति जैसे अद्धुत विचारों को अभी तक किसी ने चित्रों में क्यों नहीं उतारा.’
Late artist S H Raza’s love letters to French girlfriend to be published
https:// www.hindustantimes.com/ art-and-culture/ s-h-raza-s-love-letters-to- french-girlfriend-to-be-pu blished-as-a-book/ story-hxDdPCA925Ea3AZPCLydT K.html
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रजा के चित्रों में इसी तरह भारतीय दर्शन की झलक दिखाने के लिए त्रिकोण भी आया जो स्त्री और पुरुष को परिभाषित करता है. बकौल रजा, ‘मेरे चित्रों में अकसर दो त्रिभुज एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं जो कि स्त्री और पुरुष को दर्शाते हैं. पचास स्त्रियों और पुरुषों को प्रेम करते हुए दिखाने के बजाय मैं एब्सट्रेक्ट जियोमैट्री के माध्यम से उन्हें त्रिभुज के तौर पर दर्शाता हूं.’ यह पूछने पर कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में हिंदुस्तान के बंटवारे का दर्द बयां करतीं ‘सिटीस्केप’ (1946) और ‘बारामूला इन रूइन्स’ (1948) जैसी कई यथार्थवादी पेंटिंग बनाईं लेकिन अब क्यों नहीं, का जवाब भी रजा ने बड़े ही रोचक अंदाज में दिया था, ‘अब जो व्यक्तिगत पीड़ाएं हैं उनको मैं अपनी कला में ला ही नहीं सकता. सभी मनुष्यों के सामूहिक विचार और पीड़ा को अपनी पेंटिंग में कैद कर सकता हूं लेकिन किसी एक के विचार या पीड़ा को कैनवास पर उभारना अब मेरे लिए मुश्किल है.’
SH Raza (1922-2016): The Point Man
http:// www.openthemagazine.com/ shorts/smallworld/ sh-raza-1922-2016-the-point -man
http://
असली और नकली पेंटिंग के बीच फर्क करने में नाकाम रहने वाले कला-प्रेमियों के बारे में भी रजा ने एक दिलचस्प वाकया साझा किया था. ‘भारत लौटने के बाद मैं एक बार अपने चित्रों की एक प्रदर्शनी में गया. 24 चित्र थे मेरे वहां, और सभी नकली! मेरे बताने से पहले न तो गैलरी मालिक को इसका पता था और न ही वहां आकर तस्वीरों को निहार रहे कला-प्रेमियों को इसकी जरा सी भी भनक.’
‘मेरे चित्रों में अकसर दो त्रिभुज एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं जो कि स्त्री और पुरुष को दर्शाते हैं. पचास स्त्रियों और पुरुषों को प्रेम करते हुए दिखाने के बजाय मैं एब्सट्रेक्ट जियोमैट्री के माध्यम से उन्हें त्रिभुज के तौर पर दर्शाता हूं’
(सैयद हैदर रज़ा की पेंटिंग सौराष्ट्र 2.4 million pounds (तकरीबन 22 करोड़ रूपए)
Raza sets record for Indian modern art in LondonA painting by leading Indian artist Syed Haider Raza sold for almost 2.4 million pounds in London on Thursday, setting a record for a modern Indian work. “Saurashtra”, dated 1983, was estimated to fetch between 1.3 and 1.8 million pounds, but finally sold for 2,393,250 pounds including buyers’ premium. The painting belonged to a key
(newsJun 11, 2010 | By Anakin)
रजा ने इस व्यक्तिगत सवाल का जवाब भी बहुत खूब दिया कि कई दूसरे प्रसिद्ध हिंदुस्तानी चित्रकारों की तरह (एमएफ हुसैन, राजा रवि वर्मा, अमृता शेरगिल), उन्होंने पेंटिंग की उन विधाओं को क्यों नहीं अपनाया जिसमें बनी आकृतियों के सहारे आम जनता के लिए चित्रों को समझना और उनसे तुरंत जुड़ाव महसूस करना आसान होता है. ‘हम भारतीयों का जो देखने का तरीका होता है, वो सिर्फ आंखों से देखना नहीं होता. आंखों से देखना, हृदय में उतारना और बुद्धि का उपयोग करके उसे कैनवास पर उकेरना. जब हृदय और बुद्धि का संगम होता है न, तब वह रियलिज्म से हटकर कुछ और हो जाता है. आजादी के बाद हमारे यहां अंग्रेजों की वजह से चित्रकारों ने यूरोपियन रियलिज्म को जरूरत से ज्यादा हाथों-हाथ लिया था. वो विधा कहती है कि जो कुछ भी आंखों से दिख सके उसे ही कैनवास पर उतारने का नाम कला है. लेकिन भारतीय चित्रकार का ध्येय यह नहीं है. उसका लक्ष्य तो यह है कि आंखों से देखो, मन से सोचो और दोनों को मिलाकर जो बाहर निकले उसे चित्र में सामने लाओ. आप अजंता-एलोरा देखिए, आदिवासी चित्रकला देखिए, गांवों की कला देखिए, उसमें यूरोपियन रियलिज्म नहीं होता. और इसी वजह से वह इतनी खूबसूरत होती है.’
The progressive artist (Front L to R) Francis Newton Suza,K H Ara, A H Gade,
Back Row(L to R) M F Husain, S K Bakre, S H Raza,
Back Row(L to R) M F Husain, S K Bakre, S H Raza,
यकीनन, इसीलिए सैयद हैदर रजा के चित्र भी समय के अंधड़ में कभी धूल नहीं खाने वाले. और जब तक हम यह जानने-समझने की कोशिश करते रहेंगे कि एक बेहद लंबे करियर में रजा ने क्या-क्या उकेरा, और उनके चित्रों में क्या-कितना भारतीय था और क्यों था, तब तक यह भारतीय चित्रकार अपने चित्रों द्वारा हमेशा अमर बना रहेगा. आमीन! (मनीषा यादव का यह लेख सत्ग्रह से)