Wednesday, September 19, 2018

साक्षात्कार- 'तुमसे किसने पूछा.'


समीक्षक फुन्नु सिंह के सवाल –                               ‘तुमसे किसने पूछा’ के लेखक उस्मान खान के जवाब


01.सवाल:-किताब में ऐसी कौन सी बात ही जिसने आपको यह संग्रह लिखने पर मजबूर किया. इसे पाठक क्यों पढ़े?
जवाब:- जैसा कि मैंने किताब में भी कहा है, कि यह कहानियां मेरी अपनी न होकर समाज की हैं, जो समय समय पर दोहराई जाती रहीं हैं. लेकिन अच्छी कहानी या किताब वही है जो समाज को आइना दिखाएँ. साहित्यकार हो या लेखक, कहीं न कहीं वह समाज में व्याप्त बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ता रहता है. मेरी भी यही इस किताब के माध्यम से कोशिश है कि मैं समाज को कुछ सकरात्मक देकर जाऊं. अगर आप कुछ ऐसी कहानियां पढने के शौक़ीन हैं जो हमारे आसपास घटती हैं, लेकिन हम उन्हें नज़रंदाज़ कर देते हैं. तो यह किताब आपके लिए बेहद मुफीद है.
02सवाल:-‘फेकुआ हरामी’ मेरे ख़याल से आपके मन की खीज है. क्यों जिस तरह से सधी हुई शुरुआत हुई है कहानी आगे चलकर भटक जाती है. क्या आप इस बात से सहमत हैं?
‘तुमसे किसने पूछा’ किताब को पढ़कर कई लोगों ने ‘फेकुआ हरामी’ पात्र को हमारे समाज में आस पास रहने वाला ही किरदार बताया है. कुछ दिन पहले जानी मानी लेखिका और अनुवादक रचना भोला यामिनी जी ने भी यही बात कही. तो यह मन की खीज नहीं, ग़रीब मुस्लिम समाज के कई घरों की सच्चाई है, जहाँ लोग इस्लाम की असल बातों से दूर रहकर, कम इल्मी की वजह से कथिक पीर जी और मियां जी के चंगुल में गिरफ्त हैं. बाकि कहानी भटक जाती है ऐसा तो मुझे नहीं महसूस हुआ लेकिन कई लोगों की शिकायत रही कि कहानी अधूरी सी जान पड़ती है. जिससे मैं पूरी तरह से सहमत हूँ. भविष्य में इसके आगे का पार्ट लिखे जाने की पूरी गुंजाईश है.
03.सवाल:- फेसबुक पर मौजूद लेखकों में आप किसे बार बार पढ़ना चाहेंगे? क्या आप फुन्नु सिंह द्वारा दिए गए रेटिंग से सहमत हैं?
किसी लेखक का फेसबुक पर मौजूद होने न होने से मैं उसके लेखन का आंकलन नहीं करता. हाँ अगर आपका इशारा नए लेखकों की तरफ है तो मैं नीलोत्पल और रश्मि रविशा जी को दोबारा पढ़ना चाहूँगा.
किताब का रिव्यु कई बार हमारी पसंद नापसंद पर भी होता है. रिव्यु बहुत अधिक किताब की बिक्री को प्रभावित नहीं करता. असल है आपका लेखन. मैं आपके रिव्यु से सहमत हूँ क्योकि यह आपके अपने विचार है.
मैं आपको याद दिलाऊं एक फ़िल्मी पत्रिका आती थी माधुरी जिसमे अरविन्द कुमार जी ने अगस्त 1975 में शोले फिल्म का रिव्यु ‘सबसे घटिया फिल्म बोलकर दिया था. और उसे अब तक की सबसे बकवास फिल्म घोषित किया था. जहाँ तक कि अमिताभ बच्चन साहब का रिव्यु में ज़िक्र तक नहीं था. आज शोले फिल्म के बारे में मुझे कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है.
04.सवाल:-एक लेखक के पास दूसरों की अपेक्षा जज्बातों को समझने की क्षमता अधिक होती है. यदि आपको यहाँ से,इसी maturity के साथ आपको उम्र के  16वें साल में भेज दिया जाये, तो आप अपनी कौन सी भूल को सुधारना चाहेंगे और कौन सी गलती को फिर से दोहराना चाहेंगे?
मैं अपनी गर्लफ्रेंड से फिर से मिलना चाहूँगा. ताकि हम जीवन भर साथ रह सकते. प्यार करने की ग़लती को दोबारा दोहराना चाहूँगा.
05.सवाल:-यदि आपको देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाये तो, साहित्य के लिए आपका योगदान क्या होगा?
कुछ भी नहीं. तब मेरी प्राथमिकतायें और होंगी. जैसे जातिवाद और धार्मिक उन्माद ही देश की सबसे बड़ी समस्या है. इनका ख़ात्मा, कानून और शिक्षा के स्तर में सुधार. यह दोनों समस्याएँ हल हो गईं तो साहित्य अपने आप फलने फूलने लगेगा.
फिर भी सवाल आया है तो जवब देना होगा. मैं देखता हूँ कि अक्सर किसी साहित्कार को सम्मान या तो जीवन के अंतिम पड़ाव में मिलता है या उसके गुज़र जाने के बाद, ऐसा न होकर उसका सम्मान तब किया जाये जब वह साहित्य में उर्जावान हो. सम्मान के नाम पर हज़ार, लाख की चिल्लर न देकर उसकी सही आर्थिक मदद की जाये.


No comments:

Post a Comment

Asian Image Apollo Award.