"जीने की जो छोटी सी ही,
एक तमन्ना जताई थी!
लुटाने को कुछ भी न था,
गंवानी पूरी खुदाई थी!"
एक तमन्ना जताई थी!
लुटाने को कुछ भी न था,
गंवानी पूरी खुदाई थी!"


त्याग, समर्पण, इच्छायें, समाज का दोगलापन, चरित्रों का रंग बदलना, और कई चीज़ें पठनीय बनाती हैं इस उपन्यास को! मध्यम वर्गीय परिवेश में ज़बरदस्त तानाबाना बुना है! पात्र और चरित्र बनावटी नहीं हैं बिल्कुल भी! सच कहें जुबैदा और अली की प्रेम कहानी अपने आप में बेमिसाल है, क्योंकि आपने उस समाज का चेहरा दिखाया है जो चाहते तो हैं हम कि ऐसा होना चाहिये मगर उसके लिये सिर्फ बातें ही होती हैं हमारे पास, उसका हिस्सा बन पाना सबके बस की बात नहीं!
नॉवेल बड़ा है और गल्तियां ढूँढने शायद हम किसी भी किताब में नहीं बैठते क्योंकि पाठक बनकर पढ़ना अच्छा लगता है!!
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