Wednesday, September 19, 2018

A book Based on Acid Attack

"जीने की जो छोटी सी ही,
एक तमन्ना जताई थी! 
लुटाने को कुछ भी न था,
गंवानी पूरी खुदाई थी!"
उस्मान खान भाई! आपकी किताब स्टॉलों से देखते ही उठाने वाली है! कारण जिस समाज में हम रहते हैं वहां लड़की का चेहरा उसकी पहचान से ज्यादा उसकी ज़रूरत है! एसिड अटैक पर लिखी इस किताब के कवर पर जिनकी फोटो है, मैं उन्हें नहीं जानता, उस्मान भाई बेहतर बतायेंगे, मगर जीवन्तता, जीवटता और इस मुस्कान के लिये शब्द मेरे पास तो नहीं🙏 हम सब चाहे जितना भी आदर्शवादी बन लें मगर सामने से स्वीकारने में बड़े बड़े के आदर्श सूखे पत्ते हो जाते हैं! ये मुस्कान उन्हीं छद्म आदर्शवादियों के मुंह पर तमाचा है! जीने के लिये हौसला चाहिये, हिम्मत चाहिये जो इनमें असीमित है! एसिड अटैक पीड़िता को तकलीफ सिर्फ उसका दर्द नहीं देता, दर्द देता है खोखलेपन से भरे रिश्तों का मौका पड़ने पर मुकर जाना, मुंह फेर लेना! उस्मान साहब आपने बेहतरीन तरीके से रिश्ते गढ़े हैं, काबिले तारीफ!
त्याग, समर्पण, इच्छायें, समाज का दोगलापन, चरित्रों का रंग बदलना, और कई चीज़ें पठनीय बनाती हैं इस उपन्यास को! मध्यम वर्गीय परिवेश में ज़बरदस्त तानाबाना बुना है! पात्र और चरित्र बनावटी नहीं हैं बिल्कुल भी! सच कहें जुबैदा और अली की प्रेम कहानी अपने आप में बेमिसाल है, क्योंकि आपने उस समाज का चेहरा दिखाया है जो चाहते तो हैं हम कि ऐसा होना चाहिये मगर उसके लिये सिर्फ बातें ही होती हैं हमारे पास, उसका हिस्सा बन पाना सबके बस की बात नहीं!
नॉवेल बड़ा है और गल्तियां ढूँढने शायद हम किसी भी किताब में नहीं बैठते क्योंकि पाठक बनकर पढ़ना अच्छा लगता है!!

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