"तुमसे किसने पूछा"https://amzn.to/2p9dLQ7
किताब :- तुमसे
किसने पूछा.
ISBN 10:- 978-93-87390-23-2
लेखक:- उस्मान खान
प्रष्ट संख्या :- 180
मूल्य:- 120
प्रकाशक:- अंजुमन
प्रकाशन इलाहबाद
समीक्षक:-पूजा रागिनी खरे
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इस कहानी की गठरी में जो कुछ ऐसा है जो पढ़ने वाले को सवाल भी देता है और जवाब भी। तभी तो इस संग्रह का नाम है "तुमसे किसने पूछा"
सबसे ईमानदारी इस किताब के लिए इसके लेखक महोदय की ये रही कि जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने उनकी ये किताब आर्डर की है तो उन्होंने सीधे लफ़्ज़ों में कहा कि आपको मेरी पहली किताब मंगवानी चाहिए थी वो ज्यादा अच्छी है। उस्मान साहब की ईमानदारी के लिए उनको साधुवाद। लेखक महोदय की ईमानदारी उनकी कहानियों में नज़र आती है।
आत्म कथ्य में लेखक ने लिखा है कि मेरी कहानियाँ मेरी नही हैं, यह अनुभव की पोटली है। अगर आज का लिखा , कल रक काम आ जाए तो समझो लिखना सार्थक हो गया। ये बहुत बड़ी बात है।
"बहता पानी" में कहते है कि हर कामयाबी के पीछे एक संघर्ष भरी कहानी होती है। कामयाबी यूं ही नही आपका दरवाजा खटखटाती। सत्य वचन ।
कहानी "भूत का बच्चा"- बहुत सरल कहानी लगी। सच मे ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। इस कहानी में अंत तक
रोचकता बनी रहती है।
हाँ मेरे हिस्से का सच हमे थोड़ा कम समझ आई।
चौथी कहानी है "कृष्णा"- जो कि मुझे इस पूरे कहानी संग्रह की जान लगी। कहानी की भाषा शैली, भावनात्मक तथ्य सब बहुत लाजवाब लगा।
"समय लकड़हारा" तो ऐसी लगी कि फुआ जैसा कोई हमारे आस पास का ही है। जो अपने अकेलेपन को बच्चों के कोलाहल से तोड़ता है। ये कहानी भी बहुत अच्छी है। "दिल्ली का पानी" शायद जो समाज मे हो रहा है उसी को बताता है। गोपाल बजी आज के समय की मानसिकता को बताता है। कुम्हैडी छुआछूत पर आधारित दो दोस्तों की प्यारी सी कहानी है। हाँ फेकुआ हरामी कहानी मुझे अधूरी सी लगी। साधुओं पीरों फकीरों के ढोंग से पर्दा उठाती एक उम्दा कहानी का अंत उसके प्रारम्भ से बिल्कुल अगल लगा। शायद उस्मान साहब इस कहानी का दूसरा भाग लिखें। तब जाकर ये कहानी अपना उद्देश्य पूरा कर पाए। तुमसे किसने पूछा कहानी का प्रवाह किसी फिल्म जैसा लगा। जिसमे रहस्य से पर्दा उठने पर नायक के लिए पाठक के मन मे श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। पूरा कहानी संग्रह पढ़ जाना चाहिए कृष्णा की ममता , फुआ के अकेलेपन, भूत का सच, गोपाल की दोहरी मानसिकता के लिए पढ़ना चाहिए। सीधे और सरल कहानियों के लिए पढ़ना चाहिए। बाकी न पढे जाने के बहुत बहाने हैं।
मैं न तो समीक्षक हूँ न कोई लेखिका इसलिए रेटिंग करना या समीक्षा करना मेरे बस का रोग नही है। बस जो लगा पढ़कर वही लिख दिया। बाकी तुमसे किसने पूछा?
Book Review bt-Puja Ragini Khare.[Manjari]
सबसे ईमानदारी इस किताब के लिए इसके लेखक महोदय की ये रही कि जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने उनकी ये किताब आर्डर की है तो उन्होंने सीधे लफ़्ज़ों में कहा कि आपको मेरी पहली किताब मंगवानी चाहिए थी वो ज्यादा अच्छी है। उस्मान साहब की ईमानदारी के लिए उनको साधुवाद। लेखक महोदय की ईमानदारी उनकी कहानियों में नज़र आती है।
आत्म कथ्य में लेखक ने लिखा है कि मेरी कहानियाँ मेरी नही हैं, यह अनुभव की पोटली है। अगर आज का लिखा , कल रक काम आ जाए तो समझो लिखना सार्थक हो गया। ये बहुत बड़ी बात है।
"बहता पानी" में कहते है कि हर कामयाबी के पीछे एक संघर्ष भरी कहानी होती है। कामयाबी यूं ही नही आपका दरवाजा खटखटाती। सत्य वचन ।
कहानी "भूत का बच्चा"- बहुत सरल कहानी लगी। सच मे ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। इस कहानी में अंत तक
रोचकता बनी रहती है।
हाँ मेरे हिस्से का सच हमे थोड़ा कम समझ आई।
चौथी कहानी है "कृष्णा"- जो कि मुझे इस पूरे कहानी संग्रह की जान लगी। कहानी की भाषा शैली, भावनात्मक तथ्य सब बहुत लाजवाब लगा।
"समय लकड़हारा" तो ऐसी लगी कि फुआ जैसा कोई हमारे आस पास का ही है। जो अपने अकेलेपन को बच्चों के कोलाहल से तोड़ता है। ये कहानी भी बहुत अच्छी है। "दिल्ली का पानी" शायद जो समाज मे हो रहा है उसी को बताता है। गोपाल बजी आज के समय की मानसिकता को बताता है। कुम्हैडी छुआछूत पर आधारित दो दोस्तों की प्यारी सी कहानी है। हाँ फेकुआ हरामी कहानी मुझे अधूरी सी लगी। साधुओं पीरों फकीरों के ढोंग से पर्दा उठाती एक उम्दा कहानी का अंत उसके प्रारम्भ से बिल्कुल अगल लगा। शायद उस्मान साहब इस कहानी का दूसरा भाग लिखें। तब जाकर ये कहानी अपना उद्देश्य पूरा कर पाए। तुमसे किसने पूछा कहानी का प्रवाह किसी फिल्म जैसा लगा। जिसमे रहस्य से पर्दा उठने पर नायक के लिए पाठक के मन मे श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है। पूरा कहानी संग्रह पढ़ जाना चाहिए कृष्णा की ममता , फुआ के अकेलेपन, भूत का सच, गोपाल की दोहरी मानसिकता के लिए पढ़ना चाहिए। सीधे और सरल कहानियों के लिए पढ़ना चाहिए। बाकी न पढे जाने के बहुत बहाने हैं।
मैं न तो समीक्षक हूँ न कोई लेखिका इसलिए रेटिंग करना या समीक्षा करना मेरे बस का रोग नही है। बस जो लगा पढ़कर वही लिख दिया। बाकी तुमसे किसने पूछा?
Book Review bt-Puja Ragini Khare.[Manjari]
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